मधुर लालसा सखे हृदय में
मधुर लालसा सखे हृदय में

जीवन के इस मध्यभूमि में
प्रेम से सिचिंत कब होंगें।
*मधुर लालसा सखे हृदय में*
*प्रेम प्रवाहित कब होंगें।।*
कभी मिलन के सुखद योग में
कभी याद की नौका में।
कभी सतायें विरह वेदना
कभी बावड़ी चौका में।।
मधुरजनी में सुनों सखे रे!
प्रेम से सिचिंत तब होंगें
*मधुर लालसा सखे—————–*
प्रेम तपोवन की शाखा है
मीत तुझे है ज्ञात नहीं।
तरल हँसी अधरों पर गूँजे
नयन बाँकपन नाप रही।।
सुभगे की जब याद सतायें
प्रेम से सिचिंत तब होंगें
*मधुर लालसा————————-*
खुले नयन से स्वप्न दिखें जब
यौवन में अभिलाषा हो।
अनायास पलकें झुक जायें
तेज गती में श्वासा हो।।
कुछ कहना हो, कह नहि पाओं
प्रेम से सिचिंत तब होंगें
*मधुर लालसा————————-*
वाणी अधरों पर रुक जायें
परवशता में हृदय रहें।
कोई क्या उर में आ बैठा
सखे! यहीं तू बात कहें।।
तन-मन दोनों जब समान हों
प्रेम से सिचिंत तब होंगें
*मधुर लालसा————————–*
सुनों सखे रे! तुझे बताऊँ
रंच चकित मत हो जाना।
उर परिवर्तित दिखें तुझे जब
प्रेम गीत तुम तब गाना।।
जीवन मरण सभी हो निश्चित
प्रेम से सिचिंत तब होगें
*मधुर लालसा————————–*
*गगन उपाध्याय”नैना”*