महारानी दुर्गावती बलिदान दिवस कविता

महारानी दुर्गावती अबला नहीं,वो तो सबला थी।
महारानी तो गोंड़वाना से निकली हुई ज्वाला थी।।

चंदेलों की बेटी थी,गोंड़वाना की महारानी थी।
चंडी थी,रनचंडी थी,वह दुर्गावती महारानी थी।।

अकबर के विस्तारवादी साम्राज्य के चुनौती थी।
गढ़ मंडला के राजा दलपत शाह के धर्म पत्नी थी।।

महारानी दुर्गावती साहस, वीरता की बलिदानी थी।
प्रजा के रक्षा के लिए साहस वीरता की प्रतिमूर्ति थी।।

महोबा के राजा की बेटी थी, गढ़ मंडला में ब्याही थी।
महारानी के कामकाज को जन जन में सराही गई थी।।

महारानी मां बनी,भरी जवानी में असमय विधवा हुई थी।
उसकी एक कहानी में दुख की कई गाथाएं भरी हुई थी।।

24 जून1564 को मुगल सैनिकों को रणक्षेत्र में थर्रायी थी।
मुगल सैनिकों के सर को काटती हुई वीरगति को पायी थी।।

आज भी महारानी की समाधि नर्रई नाला तट पर बनी हुई है।
गोंड़ो की मुगलों से लड़ते हुए हार नदी के तट पर जहां हुई है।।
पुनीत सूर्यवंशी

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