मैं साथ हूं हमेशा तेरे ( पिता पर कविता)-रीता प्रधान
मैं साथ हूं हमेशा तेरे ( पिता पर कविता)
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हमारी और हमारे पापा की कहानी ।
आसमान सा विस्तार ,सागर सा गहरा पानी।
जब जन्म पायी इस धरा पर , वो पल मुझे याद नहीं।
मां कहती है बेटा तेरे पापा के लिए,इससे बड़ी खुशी की कोई बात नहीं।।
मां की मैं लाडली गुड़िया, पापा तेरी परी लाडली बिटिया रानी हूं।
कहते हो मुझसे आके जो ,मैं तो तुम्हारी अनकही एक अनोखी कहानी हूं।।
एक वक्त था पापा मैंने जब, समझा ना था तुम्हारे प्यार को।
गुस्से में हमेशा छिपा लेते थे, जाने क्यों अपने दुलार को ।।
सोचती थी आजादी ना दी, ना करते मुझ पर भरोसा हो।
एक पल के लिए भी ना करते तन्हा मुझे,जैसे फिक्र ही अपना मुझ पर परोसा हो।।
कुछ पल की भी जो दूरी होती थी, स्कूल से मुझको घर आने में।
फिक्र इतनी जो करते हो तुम, और कौन कर सकेगा इतना सारे जमाने में।।
मेरी मांगों को कर देते हो नज़र अंदाज़ , ऐसा भी कभी मैंने सोचा था।
माफ करना पापा मेरे , उस वक्त तेरे प्यार को ना मैंने देखा था ।।
बंद कमरों में मुझको, पिंजरे सा जीवन महसूस होता था।
अनजान थी तब मैं पापा मेरे, तुमको फिक्र मेरी कितना सताता था।।
पढ़ायी के लिए मेरी जो तुम, सारा दिन धूप धूप में भी फिरते थे।
रुक ना जाए कहीं पढ़ायी मेरी , सोच के भी कितना डरते थे।।
मेरी पढ़ायी के लिए मुझसे भी ज्यादा, तुम ही सक्रिय रहते हो।
बेटा पढ़ लिख करो अपना हर सपना पूरा , मैं साथ हूं हमेशा तेरे मुझसे कहते हो।।
आसमान सा हृदय तुम्हारा, मन सागर से भी गहरा है।
शब्द कहां से जोडूं तुम्हारे लिए, भगवान से भी प्यारा तेरा चेहरा है।।
बात स्वास्थ पर जब मेरी आती है, छींक से भी मेरी तुम कितना घबरा जाते हो।
बीमार जो कभी थोड़ी हो जाती , थामे हाथ मेरा साथ ही रह जाते हो।।
आज समझ में आ गया, एक पिता खुले आसमान सा होता है।
शब्द इतने कहां मेरी लेखनी में , कि बता सकूं एक पिता कैसा होता है।।
सब कुछ जानता ,सब कुछ समझता ,पर किसी से कुछ ना कहता है।
समर्पित उसका सारा जीवन , अपने बच्चों पर ही रहता है।।
एक जलता दीपक है जो खुद जल के ,रोशनी अपने बच्चों के जीवन में भरता है ।
गहरे समंदर सा हृदय उसका , सारी नादानी हमारी माफ करता है।।
पिता परम देवता सा महान , पिता एक बलवान , पिता होना भी आसान नहीं।
श्रृष्टि की कोई अन्य रचना ,होती पिता के समान नहीं।।
–रीता प्रधान