मजदूर की दशा पर हास्य व्यंग्य – मोहम्मद अलीम

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिन मनाने की शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है।

मजदूर की दशा पर हास्य व्यंग्य

दिख रहा तेरा अंजरपंजर ,
   बना रहा है तू अट्टालिकायें,
  रहता है झुग्गी झोपड़ियों में ,
  दूसरो के लिये बना रहा है रेशमी महल |
  तुझे तो बस दिन भर की पगार चाहिए ,
  तिबासी भोजन खाकर,
  अपने आप को टुटपूँजीया बना रहा है |

नित बोलता है तू गजर-बजर
  बदल रहा है तू सरकारे
  तुझे चाहिए दो वक्त की रोटियां
  सजा रहा है मखमली रेशमी सेज |
  तुझे तो दिहाड़ी पर जाना है ,
  मजदूर होकर ,
   खुल्लमखुल्ला डंका बजा रहा है |

लोग कहते है तुझे डपोरशंख,
  तू चला रहा मशीनरी उद्योग ,
  तुझे तो रोज विश्राम चाहिए ,
  बना रहा है दूसरो के लिये रेशमी सड़क |
  तुझे तो पगडंडीयो पर चलना है ,
  पददलित होकर,
   धर्म का मटियामेट कर रहा है |

करता है तू लल्लो-चप्पो ,
  अशिक्षित होकर बांध बना रहा है ,
  पीना तुझे है गंदला पानी,
  दूसरो के लिये बना रहा है रेशमी जलयान |
  तुझे तो अपने परिवार का पेट भरना है ,
  लतखोर शराब पीकर
  समाज की नजरो में  बिलबिला रहा है |
 

मोहम्मद अलीम
बसना जिला-महासमु़ंद

Leave A Reply

Your email address will not be published.