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मेरी और पत्नी पर कविता

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मेरी और पत्नी पर कविता – 30.04.2022

मेरी पत्नी दोपहर बाद
अक़्सर कुछ खाने के लिए
मुझे पूछती है
मैं सिर हिलाकर
साफ मना कर देता हूँ
मेरे मना करने से
उसे बहुत बुरा लगता है
कि मैंने उसकी मेहनत और प्यार से
बनाई चीजों का तिरस्कार किया है

पर उसे पता नहीं होता
कि मेरे खाने की इच्छा होने पर भी
मैं जब-जब उसकी बनाई
चीजों को खाने से मना करता हूँ
इसका मतलब होता है
मैं भी उस्से इक छोटी-सी बात पर
नाराज़ हूँ

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कुछ देर पहले ही
मैंने उसे अपनी रची हुई कविता
सुनाना चाहा था
या फिर किसी लेखक की
पढ़ी हुई अच्छी कहानी के बारे में
बताना चाहा था
पर पत्नी ने
बाद में सुनाना
या बाद में बताना कहकर
अंजाने में ही मुझे नाराज़ कर गई थी

मेरी पत्नी को
जितनी तकलीफ़
उसकी बनाई हुई चीजों को
मेरे न खाने से होती है
लगभग उतनी ही तकलीफ़
मुझे मेरी रची हुई कविता को
पत्नी के न सुनने से होती है।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479

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