मिल मस्त हो कर फाग में।।
खुशियों भरा यह पर्व है।
इसपे हमें अति गर्व है।।
ऋतुराज के मधु भाव का।।
हर और दृश्य सुहावने।
सब कूँज वृक्ष लुभावने ।।
उर में रखो मत द्वेष को।।
क्षण आज है न विलाप का।
यह पर्व मेल-मिलाप का।।
धर प्रेम की कर-तूलिका।।
हम मग्न हों रस रंग में।
सब झूम फाग उमंग में।।
=================
लक्षण छंद
तब छंद ‘संयुत’ स्वाद लो।।
112 121 121 2 = 10 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
********************
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया