मिट्टी जैसा होता है बचपन
मिट्टी जैसा होता है बचपन
मिट्टी जैसा होता है बचपन
जैसे ढालो ढल जाए
कूट-पीट कर जैसा चाहो
ये वैसा ही उभर आए!
जल कर सोना कुंदन होता
ऐसे ही बचपन कि कहानी
जितना तपाए कुम्हार बर्तन को
वो पक्का बनता उतना ही !!
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नवीन विचारों का प्रभाव
ऐसा ही होता बचपन पर
नीर पड़े जब माटी पर
नव रूप मिले उसको नित पल !!!
पक जाए बचपन बने जवानी
जैसे तपे माटी सुहानी
मिले गुण अब तक जो प्राणी
वही फलेंगे पूरी जवानी !!!
कुट ले पिट ले ऐ माटी तू
बाद में न कहना कुम्हार से
‘मन’ तो थी बावरी बाबा
तुम तो ‘मन’ को समझाते !!
–मंजु ‘मन’