मन्द-मन्द अधरों से अपने
मन्द-मन्द अधरों से अपने
कठिन विरह से सुखद मिलन का
पथ वो तय कर आयी।
मन्द-मन्द अधरों से अपने
सारी कथा सुनायी।।
पूष माष के कृष्णपक्ष की
छठवीं सुनों निशा थी।
शयनकक्ष में अनमन बैठी
ऐसी महादशा थी।।
सुनों अचानक मुझे बुलाये
मै तो सहम उठी थी।
और बताओं! कैसी हो तुम?
सुन मै चहक उठी थी।।
धीरे-धीरे साहस करके
मै बोली हुँ बढ़िया।
कई दिनों से बाट निहारूँ
क्षण-क्षण देखूँ घड़ियाँ।।
डरते-डरते सुनों सखी रे
मन की बात बतायी।।
मन्द-मन्द अधरों———————-
इसके आगे बात बढ़ी क्या
हम सब को बतलाओं।
आलिंगन, चुम्बन, परिरम्भण
कुछ तो हुआ बताओं।
प्रेम-पिपासा बुझी सखी क्या?
या अधरों तक सीमित।
एक-एक तुम बात बताओं
मन्द करों नहि सस्मित।।
मन में रखकर विकल करों मत
बात बताओं सारी।
तेरे सुख से हम सब खुश है
चिन्ता मिटी हमारी।।
लज्जा की ये सुघर चुनरियाँ
तुम पर बहुत सुहायी
मन्द-मन्द अधरों———————-
बात हमारी सुनकर प्रियवर
अकस्मात फिर बोले।
सुख-दुख, चिन्ता और चिता में
मन मेरा नहि डोले।।
कठिन समय से मै तो नैना
हरदम सुनों लड़ा हुँ।
तब जाकर मै छली जगत में
खुद को किया खड़ा हुँ।।
कामजित हुँ, इन्द्रजीत मै
अपनी यहीं कहानी।
सत्य बात बतलाता हुँ मै
सुनों विन्ध्य की रानी।।
बस मालिक पर मुझे भरोसा
क्या ये तुमको भायी
मन्द-मन्द अधरों———————-
इतनी बात सुनी मै सखि रे
नयन नीर भर आये।
टूटा मानों स्वप्न हमारा
क्या तुमको बतलायें।।
रोते-रोते साहस करके
विनत भाव से बोली।
थोड़ा सा विश्वास करों प्रिय
भर दो मेरी झोली।।
मेरे तो भगवान तुम्हीं हो
और कोई नहि दूजा।
मेरे आठों धाम तुम्हीं हो
करूँ तुम्हारी पूजा।।
कहते-कहते प्रिय समीप मै
जा कर पाश समायी
मन्द-मन्द अधरों———————
प्रिय बाहों के सुख का वर्णन
कैसे मै बतलाऊँ।
जीवन की सारी खुशियों को
इन पर सुनों लुटाऊँ।।
अपने पास बुला प्राणेश्वर
उर से हमें लगायें।
जीवन भर का साथ हमारा
ऐसी कसमें खायें।।
माथे पर चुम्बन की लड़ियाँ
दे आशीष सजाये
तुम मेरी हो, मै तेरा हुँ
हम आदर्श कहाये
सुन बाते! चरणों में गिरकर
जीवन सफल बनायी
मन्द-मन्द अधरों———————-
*गगन उपाध्याय”नैना”*