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मोर मया के माटी-राजेश पान्डेय वत्स

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मोर मया के माटी


छत्तीसगढ़ के माटी
अऊ ओकर धुर्रा।

तीन करोड़ मनखे
सब्बौ ओकर टुरी टुरा।। 

धान के बटकी कहाय,
छत्तीसगढ़ महतारी।

अड़बड़ भाग हमर संगी
जन्में येकरेच दुआरी।। 

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एकर तरपांव धोवय बर
आइन पैरी अरपा।

महानदी गंगा जईसन
खेत म भरथे करपा।। 

मया के बोली सुनबे सुघ्घर
छत्तीसगढ़ म जब आबे।

अही म जनमबे वत्स तैं, 
मनखे तन जब पाबे।। 

—-राजेश पान्डेय वत्स
०१/११/२०१९
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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