मुबारक हो मूर्ख दिवस

प्रस्तुत कविता मुबारक हो मुर्ख दिवस आशीष कुमार मोहनिया के द्वारा रचित है । इस कविता के माध्यम से 1 अप्रैल मूर्खता दिवस की मुबारकबाद दे रहे हैं और अपने मित्र के साथ हुई कॉमिक घटना का वर्णन कर रहे हैं।

april-fool-day

मुबारक हो मूर्ख दिवस

सोचा एक दिन मन ने मेरे
कर ठिठोली जरा ले हँस।
थोड़ी सी करके खुराफात
हम भी मना ले मूर्ख दिवस।

योजना बना ली चुपके से
इंतज़ार था दिवस का बस।
दाना डालूँगा मित्र को मैं
पंछी जायेगा जाल में फँस।

मना बॉस को फोन कराया
होने वाला है तेरा उत्कर्ष।
खुशखबरी सुन ले मुझसे तू
है तेरा कल तरक्की दिवस।

पहुँचा सुबह ही मित्र के घर
देने को बधाई उसे बरबस।
हाथ थमाकर उपहार बोला
मुबारक हो तरक्क़ी दिवस।

आवभगत कर मुझे बिठाया
फिर लाया कोई ठंडा रस।
बोला वो गर्मी दूर भगा ले
ना रख तू कोई कशमकश।

तैर रहा था बर्फ का टुकड़ा
गर्मी ने किया पीने को विवश।
काली मिर्च का घोल था वो
पिया समझ कर गन्ने का रस।

जलती जिह्वा ने शोर मचाया
सामने से मित्र ने दिया हँस।
बोला कर ली थोड़ी सी चुगली
मुबारक हो यार मूर्ख दिवस।

बहुत हुआ हँसी मजाक तेरा
चल यार तू अब दिल से हँस।
तरक्की की खबर सुनकर तेरी
लाया हूँ जो ले खोलकर हँस।

हँसते-हँसते खोला उपहार
मुक्‍के पड़े उसको कस-कस।
मुँह पकड़ कर बैठा फिर नीचे
हुआ नहीं जरा भी टस से मस।

तरक्की दिवस तो था बहाना
बाबू हँस सके तो जोरों से हँस।
दिल की अंतरिम गहराइयों से
मुबारक हो तुम्हें भी मूर्ख दिवस।

- आशीष कुमार मोहनिया, कैमूर, बिहार

Leave A Reply

Your email address will not be published.