मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया

मुझे वो अपना गुज़रा ज़माना याद आया

वो बचपन की यादें, वो रूठना मनाना याद आया

बेरों की वो झुरमुट , वो नदी का किनारा

काँधे पर स्कूल का बस्ता, वो लड़ना लड़ाना याद आया

खिल जाती थीं बांछें , जब जेब में होती थी चवन्नी

वो मन्नू हलवाई की दूकान , वो कुल्फी वाला याद आया

ठाकुर साहब के बाग़ से , छुपकर चुराए वो आम

बापू की डांट डपट, माँ का मुझको बचाना याद आया

गिल्ली डंडे का वो खेल, कंचे बंटों की खनखन

कभी हारकर रोना , कभी जीतकर खुश होना याद आया

त्यौहार के आने की ख़ुशी, मेले की रौनक

वो गुड्डे गाड़ियों से सजा बाज़ार, वो टिकटिक करता बन्दर याद आया

संतू की चाची का पान खाकर, यहाँ वहां पिचपिच करना

मंदिर की घंटी का स्वर , वो मंदिर का प्रसाद याद आया

छुपान – छुपाई का वो खेल, कैरम पर नाचती गोटियाँ

वो पढ़ाई को लेकर आलस, वो फेल होते होते बचना याद आया

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *