नारी सम्मान पर कविता
नारी सम्मान पर कविता

करते हो तुम बातें,
नारी के सम्मान की,
गाते हो तुम गाथायें,
नारी के बलिदान की।
क्या तुमने कभी अपने,
घर की नारी को देखा है,
घर की चौखट ही जिसके,
जीवन की लक्ष्मण रेखा है।
सपने जिसके सारे,
पलकों में ही खो जाते,
इच्छाएँ जिसके पूरे,
कभी भी न हो पाते।
आज भी वो अबला है,
कोख में मारी जाती है,
अपने सपनों को करने साकार,
जन्म तक न ले पाती है।
बोलो समाज के प्रतिनिधि,
दम्भ किस बात का भरते हो,
जब अपनी जननी-भगिनी की,
रक्षा ही ना करते हो।।
मधुमिता घोष