नारियल पर कविता

नारियल एक बहुवर्षी एवं एकबीजपत्री पौधा है। इसका तना लम्बा तथा शाखा रहित होता है। मुख्य तने के ऊपरी सिरे पर लम्बी पत्तियों का मुकुट होता है। ये वृक्ष समुद्र के किनारे या नमकीन जगह पर पाये जाते हैं। इसके फल हिन्दु | हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होता है। बांग्ला में इसे नारिकेल कहते हैं।

नारियल पर कविता

नारियल के वृक्ष भारत में प्रमुख रूप से केरल,पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में खूब उगते हैं। महाराष्ट्र में मुंबई तथा तटीय क्षेत्रों व गोआ में भी इसकी उपज होती है। नारियल एक बेहद उपयोगी फल है। नारियल देर से पचने वाला, मूत्राशय शोधक, ग्राही, पुष्टिकारक, बलवर्धक, रक्तविकार नाशक, दाहशामक तथा वात-पित्त नाशक है।

नारियल पर कविता


सागर तट पर खड़े हुए हैं
नारिकेल के लम्बे पेड़,
ऊँचे उठ ये नभ छूते हैं
कैसे कोई सकता छेड़।


एक तना ऊपर तक जाता
नहीं शाख का नाम निशान,
सिर पर लम्बी सघन पत्तियाँ
छतरी जैसे रखता तान ।


इन्हीं पत्तियों के झुरमुट से
झाँक रहे हैं फल के झुण्ड,
हरे हरे इन बड़े फलों में
भरा हुआ है जल का कुण्ड।


कच्चे नारिकेल का पानी
पौष्टिकता से होता युक्त,
शुद्ध पेय यह कर देता है
सब थकान से हमको मुक्त।


तीन पर्त का यह फल पककर
हो जाता है बहुत कठोर,
और दूधिया जल से गूदा
बन जाता अन्दर की ओर।


सूखे नारिकेल के फल का
भोजन में होता उपयोग,
कच्ची गिरी अगर खा लें तो
भागें सभी उदर के रोग ।


सभी पदार्थ काम के इसके
पर उपयोगी तेल विशेष,
यह खाने का स्वाद बढ़ाता
और स्वस्थ रखता है केश।


भारत की सब संस्कृतियों में
नारिकेल का रहा महत्व,
पाए जाते इस तरुवर में
सचमुच कल्पवृक्ष के तत्व।
*********
लेखक :सुरेश चन्द्र “सर्वहारा”

Leave A Reply

Your email address will not be published.