नास्तिकता पर कविता

नास्तिकता पर कविता

हमें पता नहीं
पर बढ़ रहे हैं
धीरे धीरे
नास्तिकता की ओर
त्याग रहे हैं
संस्कारों को,
आडम्बरों को
समझ रहे हैं
हकीकत
अच्छा है।
पर
जताने को
बताते हैं
मैं हूँ आस्तिक।
फिर भी
छोंड रहे हैं
हम ताबीज
मजहबी टोपी
नामकरण रस्म
झालर उतरवाना
बहुत कुछ।
बढ़ रहे हैं
धीरे धीरे
नास्तिकता की ओर
क्योंकि
नास्तिकता ही
वैज्ञानिकता है।
 राजकिशोर धिरही
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

No Comments
  1. विनोद सिल्ला says

    बहुत सुन्दर

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