नव वर्ष पर कविता – वन्दना शर्मा
नव वर्ष पर कविता – वन्दना शर्मा

आज नए साल की प्रातः पुत्री ने–
सयानी बाला की तरह..
बिना आहट के धीमे से जगाया मुझे..
बीती विचार विभावरी से वह कुछ सहमी सहमी..
खड़ी थी मेरे सामने..
उसकी चंचलता, अल्हड़ता..
अब जाने कहाँ खो गयी…
कुछ अनमनी आँखों से..
उसने मुझे देखा और..
धीमे से कहा…
क्या सच में कुछ बदलेगा..
हो सकूँगी मैं भय मुक्त…
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या वही चिर परिचित भय….
घेरे रहेगा मुझे..
इस उन्नीसवें साल में भी..
मैंने निःस्वास भर सीने से लगा..
सांत्वना देते हुए उससे कहा..
किसी के बदलने की राह ..
हम क्यों देखें…
अब बदलना होगा हमें…
जैसा हम दूसरों को देखना चाहते हैं..
वैसा बनाना होगा खुद को
स्वयं बनना होगा भय की देवी..
जिससे तुम्हें कोई भयभीत ही न कर सके..
तुम्हें बनाना है बालाओं को भय मुक्त..
अपने नए अवतार से….
स्वरचित
वन्दना शर्मा
अजमेर।
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