नया अब साल है आया

नया अब साल है आया, रहे इंसानियत कायम
मुहब्बत के चिरागाँ इसलिए हमने जलाए हैं।

सुकूने बेकराँ मिलती, अगर पुरशिस यहाँ पे हो
न हो वारफ़्तगी कोई, दिले मुज्तर कहीं क्यों हो
नवीदे सरबुलंदी से, जुड़ें सब ये तमन्ना है
सरे आज़ार के पिन्दार को कुदरत यहाँ दे धो

अमीरों के घरों में खूब भामाशाह पैदा हों
मिटे अब मुफ़लिसी का दौर ये पैगाम लाए हैं।

करें हम दीद-ए- बेबाक, दर्दे लादवा जब हो
मिले तब जिंदगी में हक़ बज़ानिब दौर हो ऐसा
फरेबे मुसलसल होती, रक़ाबत में कहीं पे जब
वहाँ मंजर हमेशा से, रहा हैवानियत जैसा

अक़ाइद में न हो मौजे- हवादिस जो खलिश अब दे
तबस्सुम हो तक़ल्लुम में, मिटेंगी तब बलाएँ हैं।

सितम -खुर्दा बशर के जख्म पर मरहम लगाएँ हम
फ़जाँ में हो नहीं दहशत, तभी वो चैन से सोए
न हो अग़ियार जब कोई, लगेंगे सब यहाँ अपने
न काशाना कहीं उजड़े, न कोई जुल्म अब ढोए।


हक़ीकत को बयाँ करके, अमन की हम दुआ करते
सग़ाने दहर बातें सुन हमारी तिलमिलाए हैं।

नज़्म निगार✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद -निवास’
बरेली( उ.प्र)


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