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नववर्ष 2022 पर हिंदी कविता

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इस वर्ष नववर्ष 2022 पर कविता बहार द्वारा निम्न हिंदी कविता संकलित की गयी हैं आपको कौन सा अच्छा लगा कमेंट कर जरुर बताएं

नववर्ष की हार्दिक बधाई : महदीप जँघेल

निशिदिन सुख शांति की उषा हो,
न शत्रुता, न ही हो लड़ाई।
प्रेम दया करुणा का सदभाव रहे,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

विश्व बंधुत्व की भावना हो विकसित,
भाईचारा और प्रेम की हो पढाई।
प्रेम से जियो और जीने दो सभी को,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

सदियों से विश्व गुरु रहा है भारत,
शांति व शिक्षा की जोत है जगाई।
संस्कृति सभ्यता की नित रक्षा करें,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

निर्धनों व असहायों की मदद कर,
जीवन में करें पुण्य की कमाई।
मानव जीवन को सार्थक बनाएँ,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

नशा,ईर्ष्या,मद, लोभ, त्याग दे,
अहंकार प्रतिकार त्यागें हर बुराई।
नेक कर्म कर कुछ नाम कमाएं,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

नारियों का सम्मान करें हम,
ये सब कसम खा ले हर भाई।
दया धर्म और मान रखे हम,
सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

रचनाकार✍️
महदीप जँघेल
ग्राम- खमतराई
वि.खँ- खैरागढ़,राजनांदगांव
छत्तीसगढ़

परमेश्वर साहू अंचल: मनहरण घनाक्षरी – नव वर्ष,नव हर्ष

शुरू कर शुभ काज,
मिलेंगे सर पे ताज,
मान भी मिलेंगे ढेरों,
सबको यकीन है।

नव साल मालामाल,
नव काज कर लाल,
नव साल बेमिसाल,
मौसम रंगीन है।।

त्याग आदत बुराई,
कर चल चतुराई,
दूसरों की निंदा करे,
कारज मलिन है।।

वही जन आगे बढ़े,
नित पथ नव गढ़े,
कंटक मेटते चले,,
मनुज शालीन है।।

नव दिन नव वर्ष,
जन-जन नव हर्ष,
स्वागत करने सभी,
मानव तल्लीन है।

पुलकित पोर-पोर,
उमंग है चहुँओर,
इसको मनाने सब,
बिछाए कालीन हैं।

😃🙏🙏🙏😃

✒️पीपी अंचल “गुणखान”

उपमेंद्र सक्सेना: नये वर्ष में मिटे अमंगल

गीत-उपमेंद्र सक्सेना एड.

बीता वर्ष, जुड़ गयीं यादें, वे हमको इतना
दहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

संघर्षों से जूझ रहे जो, सब दिन उनके लिए बराबर
कोई माथा थामे बैठा, कोई बन जाता यायावर
समय बदल लेता जब करवट, सुख होते उस पर न्योछावर
कोई अब गुमनाम हो गया, कोई दिखता है कद्दावर

दर्द मिला जीवन में इतना, उसको हम कब तक सहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

आगत का स्वागत हम करते, उस पर हम कितना भी मरते
लेकिन उसको भी जाना है, इस सच्चाई से क्यों डरते
नया नवेला जो भी होता, दु:ख उसको भी यहाँ भिगोता
बीच भँवर में फँसा यहाँ जो, फसल प्रेम की कैसे बोता

वातावरण घिनौना इतना, अब दबंग सबको बहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

भेदभाव अब फैला इतना, सीधा- सच्चा रोते देखा
कूटनीति पर आधारित क्यों, हुआ योजनाओं का लेखा
कोई धन-दौलत से खेले, कोई भूखा ही सो जाता
कोई चमक रहा तिकड़म से, कोई सपनों में खो जाता

लोग हुए जो अवसरवादी, कैसे वे अपने कहलाएँ
नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)
मोबा० नं०- 98379 44187

फिर वर्ष बदल रहा है : शिवाजी

कहीं पे पानी तो कहीं ओस गिर रही है
कि लगता है यह दिसंबर जाने वाला है
अब इस नव वर्ष की करो तैयारी सभी
अब एक नव वर्ष फिर से आने वाला है

कुछ लोगों की यादें अब, धूमिल होती जा रही हैं
लगता है नए रिश्तों का दामन कोई पकड़ा रहा है
आओ यहां हम सभी मिलजुल कर यूं खुशियां बांटें
हम भुला दें सभी गमों को,नव उत्कर्ष आने वाला है

पुराने साल का गम छोड़ कर हर्षोल्लास भरें हम
अब खुशियां मनाएं हम,नया प्रहर्ष आने वाला है
कि जानें क्या-क्या नया सिखाएगा अब यह साल,
नए तरीके से निखरें,कि पुराना कर्ष जाने वाला है

अब भगाएं हम इस वर्ष यह कोरोना बीमारी को
एक बार फिर से एक और नया वर्ष आने वाला है

शिवाजी के अल्फाज़

राजकुमार मसखरे: नव वर्ष

नववर्ष,नव उत्कर्ष हो
चहुँदिशि हर्ष हो ,
प्रगति के नये सोपान
यथार्थ व आदर्श हो !

कट जाये जीवन में
टीस की झंझावात
बनें सभी क़ाबिल,
अपना ये प्रादर्श हो !

हो माता का आशीष
प्रकृति की हो रक्षा
खुशी से छलके जीवन
हर दिन,हर पल अर्श हो !

राजकुमार मसखरे

इंदुरानी: नव वर्ष दोहे

धीरे धीरे उंगलियाँ, छुड़ा रहा यह वर्ष।
अंग्रेजी नव वर्ष का, मना रहे हम हर्ष।।

उखड़ रही है सांस अब ,बृद्ध दिसम्बर रोय।
जवां जनवरी क्या पता, साथ किस तरह होय।।

पनप रहीं बीमारियां,कैसे मिले निजात।
नव वर्ष,वैक्सीन नई,तभी बनेगी बात।।

बीते वर्ष को अलविदा, ले कर यह विश्वास।
साल नया यह शुभ रहे, हो पूरी हर आस।।

इन्दु,अमरोहा, उत्तर प्रदेश

अकिल खान: नया साल

जीवन में सभी मुश्किल हो जाएं दूर,
चारों दिशाओं में हो हर्ष-उमंग का सूर।
निराश-मन पुनः उठ जाओ,
आलस्य-अहं को दूर भगाओ।
जीवन में हो सफलता का भूचाल,
मुबारक हो सभी को, नया साल।

दूर करो जीवन में अपनी गलती और कमी,
फिर से हमको पुकारा है ये वीरों का ज़मीं।
अपनी कुंठा-द्वेष को है नित हराना,
मुश्किल समय में कभी न घबराना।
मेहनत से करो जीवन में कमाल,
मुबारक हो सभी को, नया साल।

गिरकर उठना जीवन में जिसने सीखा है,
इस जमाने में उसी ने इतिहास लिखा है।
मुड़ कर देखने वालों को कुछ नहीं मिलेगा,
आगे बढ़ने से ही सफलता का चमन खिलेगा।
मेहनत के ताल से मिलाओ ताल,
मुबारक हो सभी को, नया साल।

2021में कोरोना से जीवन हो गया था मुश्किल,
2022में जिन्दगी में खुशियाँ हो जाए शामिल।
जो हो गया भूल जाओ यह जीवन की रीत है,
जो किया मेहनत नित उसी को मिला जीत है।
नव वर्ष में जीवन हो खुशहाल,
मुबारक हो सभी को,नया साल।

घर-परिवार है रिश्तों की क्यारी,
दोस्तों की यारी है सबसे प्यारी।
जिसने खाया है मेहनत का धूल,
उसे मिला है कामयाबी का फूल।
कर्म से पहचानो समय का चाल,
मुबारक हो सभी को,नया साल।

–अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ.ग). पिन – 496440.

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा


भूले बिसरे खुशी और ग़म की यादें,
बनती है अतित की इतिहास पुराना।

आने वाले पल में खुशहाली भरा हो,
हार्दिक स्वागत है नववर्ष हो सुहाना।

उगते सूरज की स्वर्णीम मधुर किरणें,
नववर्ष में नव सृजन की सहभागी बनें।

दुःख ग़म से भी दूर रहे दो हजार बाईस,
कोई अनहोनी घटना की दीवार न तने ।

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा २०२२ में,
विदा २०२१ के अनेक कष्ट अपार ।

घोर संकट में परिवार की तबाही और,
अनेकों परिवार ने महामारी को झेला है।

अचानक आये अनहोनी की भूचाल को,
प्रकृति ने भी हमारे साथ खूब खेला है।।

बदलते वर्ष की अविस्मरणीय यादें,
कई रहस्यों से भरा दुख भी हजार।

आने वाले वर्ष की शुभ मंगलकामनाएं,
आप सभी के लिए अति लाभदायक हो।

हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं,
तहेदिल से शुक्रिया विदाई में कहने लायक हो।

✍️ सन्त राम सलाम,,,,,✒️
बालोद, छत्तीसगढ़

अर्जुन श्रीवास्तव: (नए वर्ष की हार्दिक बधाई)

आया है नया वर्ष!
मिलकर मनाओ हर्ष!
करो संघर्ष सब प्रेम तरुणाई हो

बिछड़े हुए मीत से!
मिलो जाकर प्रीत से!
दोनों मिल गाओ गीत प्रेम शहनाई हो

ओढ़ करके दुशाला!
आई जब भोर बाला!
पुष्पों की ले माला खुशियां छाई हो

सुनहरे यह पल!
मिलेंगे ना कल!
खुश रहो प्रतिपल नए साल की बधाई हो

स्वरचित अर्जुन श्रीवास्तव सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

महदीप जंघेल सर: दोस्ती

दोस्त तुम नववर्ष में,
जीवन में बदलाव जरूर लाओगे।
एक संदेश तेरे नाम,
भरोसा है जरूर निभाओगे।
हर बुराई छोड़ देना,
मेरा साथ मत छोड़ना।
हर वादे तोड़ देना,
मेरा विश्वास मत तोड़ना।
हर धारा मोड़ देना,
मुझसे मुंह मत मोड़ना।
सबसे रिश्ता रखना,
बुराई से मत जोड़ना।
हर वस्तु तोल देना,
मेरी दोस्ती मत तोलना।
वादा कर जीवन भर,
मुझसे संबंध मत तोड़ना।

✍️महदीप जंघेल खमतराई, खैरागढ़ जिला – राजनादगांव(छ.ग)

नववर्ष का अभिनंदन

हर्षोल्लास से सराबोर हुआ
भारतवर्ष का कण कण
शुभ मंगलमय नव वर्ष का
अभिनंदन ! अभिनंदन !

गीत संगीत से गूंज उठा
सुरम्य मधुर वातावरण
रंग बिरंगी फुलझड़ियां जलाकर
अभिनंदन ! अभिनंदन !

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नगरी नगरी द्वारे द्वारे
खिल उठा घर आंगन
रंग रंगीली रंगोली बना कर
अभिनंदन ! अभिनंदन !

सुख समृद्धि हो भारतवर्ष में
यश कीर्ति में हो वर्धन
पलक पांवड़े बिछा नूतन वर्ष का
अभिनंदन ! अभिनंदन !

विकास देश का हो अनवरत
खुशहाल हो जनता जनार्दन
मंगल कामना संग नूतन वर्ष का
अभिनंदन ! अभिनंदन !

विनती स्वीकार करो प्रभु
प्रीति पूर्वक है वंदन
सदा बरसे आशीष आपका
अभिनंदन ! अभिनंदन !

– आशीष कुमार, मोहनिया बिहार

राजेश पान्डेय वत्स: सौम्य सवेरा! ( मनहरण घनाक्षरी)

आज रश्मि रसभरी,पौष संग जनवरी,
मकर संक्रान्ति आदि,
पड़े इसी माह में!

नूतन अंग्रेजी वर्ष, सारा जग छाया हर्ष,
सनातन चैत्र मास
दुगुने उत्साह में!

दूसरा जो रविवार,जयन्ती है जयकार,
गुरु श्री गोविंद सिंह,
दिन भी गवाह में!

बारह सवेरा जब, विवेकानंद जन्में तब,
झूमे मास और झूमी
गंगा भी प्रवाह में!
(2)
तेइस दिवस आगे,सुभाष जयन्ती ताके,
जय हिन्द गूँजे नारा,
देश प्रेम चाह में!

गणतंत्र पर्व गिन,शेष है छब्बीस दिन,
तिरंगा भी लहराये,
गली गली राह में!

अट्ठाइस षटतिला,एकादशी पर्व मिला
देव हरि पूजे जायें,
रहना सलाह में!

सवेरा है झिलमिल,नाचे गायें खिल खिल,
वत्स सुख-शांति पाये,
राम की पनाह में!

–राजेश पान्डेय वत्स!

रामनाथ साहू”ननकी”: प्रीत पदावली (वर्तमान)

नववर्ष नवल विधान हो ।
संस्कृति का मधुर गान हो ।।
नवप्रभात नया भान हो
स्थापित अधर मुस्कान हो ।।

चारु चिरंतन चित चंचल ।
मदिर मरुत घुलता संदल ।।
घट घट पर घटे सुमंगल ।
पुलकित प्रस्तर का अंचल ।।

बंधु भावना हो स्थापित ।
प्रेमालय में हों वासित ।।
प्रीत प्रांत प्रिय सुखकर हों ।
हर हिय जगा हृदेश्वर हो ।।

वर्तमान निःश्रृत धारा ।
समय सुदिन हो अति प्यारा ।।
आज श्रेष्ठ कर प्रण जीवन ।
आनंदित गुण उद्दीपन ।।

संभव हो महत जितेन्द्रिय ।
जिजीविषा आनंद सुप्रिय ।।
भाल तिलक सज्जित हर्षित ।
जग में हों गर्वित चर्चित ।।

रामनाथ साहू ” ननकी “मुरलीडीह ( छ. ग. )

ज्ञान भंडारी: नूतन वर्षाभिनंदन

नव वर्ष, नवचेतना, नव उमंगे
नव हर्षित तरंगे लेकर आये,
हर दिन स्वर्णिम दिन हो,
राते हो चांदी जैसी चमकती सितारों भरी ,
भावना सबकी पावन हो ,नदियों के धारा सी,खरी।

भूले हम वेदनामय पीड़ा को , करे हम सबको आत्मसात
सुखी रहे हर मानव जात ,सुख शांति का हो आवास,
खिले हर कली कली, गूंजे हर गली गली झूलो से जैसे झूलते ,
हर शाख शाख ओ अलि अलि।

फले फूले, हर मौसम, तिरंगे की शान बढ़े,
धरा दुल्हन सी लगे,ओढ़नी टेसुओ की ओढ़े,
अमलतास , पलाश श्रृंगार करे,हर फूल झूमे,
हर डाल डाल नूतन परिधान पहनें,
हर टूटे दिल जुड़े, गाए सब मंगल गीत,
सबका स्वास्थ स्वस्थ रहे, सर पे यश का ताज हो ,
आशीर्वाद बना रहे जगत जननी का ,
आशीर्वाद बना रहे, सब स्व जनो का,
ऐसा मंगल नूतन वर्ष होवे।

रचयिता _ज्ञान भण्डारी।

एस के नीरज : नववर्ष का धमाल

नए साल की सुबह सुबह
पड़ोसी ने जोर से शोर मचाया
और मुहल्ले में भोंपू बजाया
सबको नया साल मुबारक हो!

मैंने कहा भाई सुबह सुबह ये
तुम गला क्यों फाड़ रहे हो
खुद तो रात भर सोते नहीं
दूसरों को भी सोने नहीं देते !

रात भर क्यों इसी चिंता में
घुले जा रहे थे क्या आप …
कि सुबह होते ही सबको
मुबारक पर मुबारक दूंगा
भले ही बदले में लोगों से
सत्रह सौ साठ गाली खाऊंगा!

पड़ोसी ने कहा – भाई आप
समझते नहीं मेरी बात बुझते नहीं
आज तो बस नया साल है
चारों तरफ धमाल ही धमाल है
फिर भी कमाल ही कमाल है
आपको नए साल का पता नहीं है

आज मजे करोगे तो भाया
पूरा साल मजे में बीतेगा
आज रोओगे तो पूरे साल
रोते ही रह जाओगे…..!

मैंने कहा – ना तो मुझे रोना है
ना किसी के लिए कांटे बोना है
मेरा बस चले तो साल भर मुझे
घोड़ा बेचकर सोना है …..!

मगर पड़ोसी हों अगर मेहरबान
तो गधे भी बन जाएं पहलवान
पूरी रात भर डी जे बजाया
फिर भी आपको रास ना आया
सुबह सुबह ये भोंपू बजा रहे हो
और सारी दुनिया को दिखा रहे हो
कि नया साल सिर्फ तुम्हे ही
मनाना और एंजॉय करना आता है
हमें कुछ भी नहीं आता जाता है !

लेकिन यदि हम मनाना शुरू कर दें
तो तुम मुहल्ले मुहल्ला क्या
शहर छोड़कर भाग जाओगे…
इसलिए मि.नया साल मनाना है
पड़ोसियों को अपना बनाना है
तो ये राग अलापना बंद कर दो
और नववर्ष का स्वागत करना है
तो कोई एक बुराई दफन कर दो ।

*@ एस के नीरज*

अनिल कुमार वर्मा: मंगला मंगलम 2022

जीवन पथ के सारे सपने,
सच हो सच्ची राह मिले.
उम्मीदों से अधिक स्नेह हो,
जितनी भी हो चाह मिले.
मन हो निर्मल धार सरीखा,
गहराई में थाह मिले.
कृत्य करें आओ ऐसे कि,
दसो दिशाएँ वाह मिले.
नूतन मन में नूतन चिंतन,
नये सृजन साकार करें.
सुखद सुनहरी सुंदर छाया,
जनहित में तैयार करें.
कर्मरती हों सबसे आगे,
श्रम का ही सम्मान हो.
नये वर्ष क्या जीवन भर,
आपका श्री मान हो.

शुभेच्छु
अनिल कुमार वर्मा
सेमरताल

परमेश्वर साहू अंचल: नूतन वर्ष पर दोहा (नए साल,बेमिसाल)

हृदय सुमन सम जानिए,प्रेम मिले खिल जाय।
घृणा नीर मत सिंचिए, फौरन ही मुरझाय।।

जीवन में पतझड़ नहीं , हो जी सदा बहार।
खुशियों की बारिश रहे,हो न कभी तकरार।।

करे खुशी नित चाकरी, चँवर डुलाए हर्ष।
हरपल उन्नति की कली, सुरभित हो नव वर्ष।।

शीतलता बन धूप में, रहे साथ नित छाँव।
घर आँगन हो स्वर्ग से, मधुबन जैसे गांव।

मानवता हो मनुज में, और दिलों में प्यार।
रहें मनुज नित एकता,अखिलविश्व गुलजार।।

सकल जीव सम प्रेम हो, जन-जन में संस्कार।
हिलमिल जीवन मन्त्र से,पुलकित हो संसार।।

शिक्षा की दीपक जले, घर-घर हो उजियार।
गांव-गली उपवन लगे, रिश्तों में मनुहार।।

प्रेम सुमन आँगन खिले, और शुभ्र नव भोर।
खुशियों की बरसात हो, उन्नति हो चहुँओर।।

✒️पीपी अंचल “गुणखान”

हरिश्चंद्र त्रिपाठी”हरिश” : मन उसको नव वर्ष कहेगा

फिर-फिर याद करेगा कोई,
फिर-फिर याद सतायेगी।
मंगलमय हो जीवन अनुपल,
सुखद घड़ी फिर आयेगी।1।

सुख-समृद्धि का ताना-बाना,
तार-तार उर -बीन बजे।
खुशहाली की मलय सुरभि से,
कलम और कोपीन सजे ।2।

समरसता की प्रखर धार में,
भेदभाव बह जायें सब।
सबसे पहले राष्ट्र हमारा,
नव विकास अपनायें सब।3।

नहीं किसी का मन दुख जाये,
सबको स्नेह लुटायें हम ।
अमर संस्कृति के रक्षक बन,
मॉ का कर्ज चुकायें हम।4।

साथ प्रकृति का यदि हम देंगे,
धन-धान्य पूर्ण नव हर्ष रहेगा।
दिशा बहॅकती फसल मचलती,
मन उसको नव वर्ष कहेगा।5।

चलो एक क्षण मान रहा मैं,
नव वर्ष तुम्हारा आया है।
आप मुदित हैं यही सोच कर,
मन मेरा भी हरषाया है।6।

नश्वर जीवन,कर्म हमारे,
सुख-दुःख के निर्णायक हैं।
सबके हित की सुखद कामना,
मातृभूमि गुण गायक हैं।7।

सबका साथ विकास सभी का,
ना शोषण की गुंजाइश हो।
मिले प्रकृति का संरक्षण यदि,
सुखकर दो हजार बाइस हो।8।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली -229010 (उ प्र)

आर आर साहू :नव वर्ष पर कविता

वर्ष की माला बनी है, पुष्प क्षण से,
नव्यता शिव,सत्य के सुंदर वरण से।
चित्रपट की भाँति ही,समझो समय को,
दृश्य बनते या बिगड़ते आचरण से।
नव सृजन के गीत गूँथे जा सकेंगें,
लोकहित सद्भावना के व्याकरण से।
हर्ष देशी या विदेशी से परे है,
मुक्त है यह क्षुद्रता के संस्करण से।
विश्व है परिवार,का उद्घोष जिसका,
है अटल वह वह देश इस पर प्राण-प्रण से।
एक नन्हा दीप, तम का नभ उठाकर,
ज्योति का अध्याय लिखता है किरण से।
व्यर्थ कोई भी कभी खाली न लौटा,
हाथ हो या माथ लग प्रभु के चरण से।

रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)

शची श्रीवास्तव : इन सालों में हमने देखा

नया साल फिर से आया
साल पुराना जाते देखा,
आते जाते इन सालों में
उम्र को हमने ढलते देखा,
ऐसे कितने साल बदलते
इन सालों में हमने देखा।

माँ पापा का वरदहस्त
दादीमाँ का स्नेहिल स्पर्श,
भाई बहन का प्यार अनूठा
नहीं बदलते हमने देखा,
सालों साल बदलते रिश्ते
इन सालों में हमने देखा।

मन उपवन के संगी साथी
नववर्ष पे बेहद याद आएं,
मन की परतों में दबी छुपी
यादें कभी न मिटते देखा,
स्मृतिपट से हर बात बिसरते
इन सालों में हमने देखा।

ढलती सांझ की बेला में
ढल रहा पुराना वर्ष सतत्,
लम्हा लम्हा ढल रही उम्र
उत्साह उमंग न घटते देखा,
काश कसक कुछ रह जाते
इन सालों में हमने देखा।

नववर्ष का वंदन अभिनंदन
जाते हुए साल, प्रनाम तुम्हें,
ये काल चक्र चलता यूं ही
कभी न इसको रुकते देखा,
सुख दुख नित आते जाते
इन सालों में हमने देखा।।

शची श्रीवास्तव , लखनऊ

नववर्ष विद्या-मनहरण घनाक्षरी

नव वर्ष की बेला में,मिल जुल यार सँग,
खुशियां मनाओ सब,मस्ती करो भोर से।
कोई चाहे कुछ कहे,जीवन के चार रंग,सुनो नहीं किसी की,जाने सब शोर से।।
बधाई नये साल की,बोले जब अंग अंग,गूँजे बस यही बात,मीत चारो ओर से।
अनमोल पल मिला,होना नहीं आज दंग,प्रेम को बढाओ तुम,नाचो वन मोर से।।

राजकिशोर धिरही
तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़

नव वर्ष में सपने सूरज के: माला पहल

शुभ प्रभात,शुभ सबेरा कहकर शुभचिंतन करते,
नई सुबह ,नया सवेरा कह सबका तुम अभिनन्दन करते,
पर कभी क्या तुमने मुझको परखा?
नित सुबह चलाता हूँ अविरत चरखा।

मुस्कराकर कर दो मेरा भी स्वागत,
मुझको भी कह दो
तुम सुप्रभात,
हर दिन भूमंडल मे स्वर्ण बिखेरता,
सृष्टि की हर रचना मे आभा भर देता,

हर वर्ष देखता मैं कई सपने,
पर इस वर्ष देखे स्वप्न सुनहरे,
नित बहे शान्ति समानता का स्रोत,
जिससे हो जाए जग ओतप्रोत,
भूमंडल मे बिखरे छटा सुनहरी,

न हो प्रदूषण, न हो कोई महामारी ,
नव वर्ष में हर बाला,
दुर्गा का रूप धरे विशाला,
हर बालक छू ले ऊचाईयां,
जिसकी कीर्ति से महकेगी ये दुनिया,
हर मानव के मन का महके कोना कोना,
जिसमें उत्साह, आशा नवचेतना का सजा हो पलना,
धूमिल होगा तम,तिमिर ,अवसाद सारा,
जगपटल हो जायेगा उज्जवल सारा।
(माला पहल मुंबई से)

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