पालता हूँ अपने दिल में – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
इस रचना में कवि मानव कुंठाओं का वर्णन कर रहा है |पालता हूँ अपने दिल में – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
पालता हूँ अपने दिल में – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
पालता हूँ अपने दिल में
हज़ारों गम
आज के समाज में
पल रही
बुराइयों , कुरीतियों के बीच
पल रहा हूँ मैं
पालता हूँ हज़ारों गम
अपने दिल में
आज के समाज में
टूटता , बिखरता मानव
पल – पल गिरता
उठने की
नाकान कोशिश करता
ये मानव
पालता हूँ हजारों गम
अपने दिल में
असंयमित होता
अतिमहत्वाकांक्षी होता
अतिविलासी होता
पथ भृष्ट होता
छोड़ता
आदर्शों को पीछे
संस्कारों से नाता खोता
संस्कृति की छाँव से
दूर होता
पालता हूँ अपने दिल में
हज़ारों गम
आज का मानव दिशाहीन होता
चरित्रहीन होता
असत्यपथगामी होता
अप्राकृतिक कुंठाओं का
शिकार होता
पालता हूँ अपने दिल में
हज़ारों गम