पावस पर कविता
पावस पर कविता
पावस पनघट आज छलक रहा है।
झर रहा नीर बूँद – बूँद,
प्रिय स्मृति से मन भींग रहा है।
मैं विरहिणी प्रिय-प्रवासी,
घन पावस तम-पूरित रात।
झूम-झूम घन बरस रहे हैं,
अलस – अनिद्रित सिहरता गात।
किसे बताऊं विरह-वेदना,
सुख निद्रा से जग रंग रहा है।
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झर रहा नीर बूँद – बूँद,
प्रिय स्मृति से मन भींग रहा है।
झरती बूंदें, तपता तन है,
विरह- विगलित व्यथित मन है।
चपला चंचला घन गर्जन है,
स्मृति-रंजित उर स्पंदन है।
किसे दिखाऊँ विकल चेतना,
चेतन विश्व तो ऊंघ रहा है।
झर रहा नीर बूँद – बूँद,
प्रिय स्मृति से मन भींग रहा है।
साधना मिश्रा, रायगढ़-छत्तीसगढ़