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पिता पर कविता~बाबूलाल शर्मा

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पिता पर कविता-बूलालशर्मा

Father's Day
जून तीसरा रविवार पितृ दिवस || father’s day


पिता ईश सम हैं दातारी।
कहते कभी नहीं लाचारी।
देना ही बस धर्म पिता का।
आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१

तरु बरगद सम छाँया देता।
शीत घाम सब ही हर लेता!
बहा पसीना तन जर्जर कर।
जीता मरता सतत प्रणेता।२

संतति हित में जन्म गँवाता।
भले जमाने से लड़ जाता।
अम्बर सा समदर्शी रहकर।
भीषण ताप हवा में गाता।३

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बन्धु सखा गुरुवर का नाता।
मीत भला सब पिता निभाता!
पीढ़ी दर पीढ़ी दुख सहकर!
बालक तभी पिता बन पाता।४

धर्म निभाना है कठिनाई।
पिता धर्म जैसे प्रभुताई।
नभ मे ध्रुव तारा ज्यों स्थिर।
घर हित पिता प्रतीत मिताई।५

जगते देख भोर का तारा।
पूर्व देख लो पिता हमारा।
सुत के हेतु पिता मर जाए।
दशरथ कथा पढ़े जग सारा।६

मुगल काल में देखो बाबर।
मरता स्वयं हुमायुँ बचा कर।
ऋषि दधीचि सा दानी होता।
यौवन जीवन देह गवाँ कर!७

पिता धर्म निभना अति भारी।
पाएँ दुख संतति हित गारी।
पिता पीत वर्णी हो जाता।
समझ पुत्र पर विपदा भारी।८



बाबू लाल शर्मा “बौहरा”
सिकंदरा, दौसा , राजस्थान

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