प्राण जाए तो जाए पर व्यंग्य कविता
प्राण जाए तो जाए पर व्यंग्य कविता
प्राण जाए तो जाए , फेर दारू तो मिल जाए !
कइसे जल्दी जुगाड़ होही, कोई ये तो बताए !!
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अब्बड़ दिन म खुले हावे, दारू भट्टी के दुवारी !
जी भर के मेहा पीहू, भले गारी दे मोर सुवारी !!
लकर धकर सूत ऊठ के आंखी रमजत जात हे !
खखाए कोलिहा कस उत्ता-धूर्रा, भीड़ में झपात हे !!
धक्का-मुक्की करीस तहां, पुलिस के डंडा खात हे !
मिलगे शीशी भीड़ भाड़ म , अब चखना ल सोरीयात हे !!
नंगत के पीये दरुहा बाबू , उछरत बोकरत आए !
प्राण जाए तो जाए , फेर दारू तो मिल जाए !!
लटेपटे घर पहुंचे ,अऊ सुवारी ल चिल्लाए !
बाहर निकल ये फलनिया, बोकरा असन नरीयाय !!
छोटे बड़े के नइ हे चिनहारी, कुकुर कस ढोलगत हे !
जे पात हे ते हा लाते लात भोकड़त हे !!
मार खागे कुटकूट ले हाथ गोड़ टूटगे !
देखत देखत फलाना हा जीनगी ले ऊठगे !!
का बताव संगी मेहा ये दरुहा के कहानी !
रोज पीयई म धन सिरागे, खुवार होगे जिनगानी ।।
हरके बरजे माने नहीं, कोन येला समझाए !
प्राण जाए तो जाए , फेर दारू तो मिल जाए !!
दूजराम साहू “अनन्य “
निवास – भरदाकला
तहसील – खैरागढ़
जिला -द राजनांदगाँव (छ. ग.)