प्रकृति और पर्यावरण

poem on trees
poem on trees

कितनी मनोरम है ये धरती
प्रकृति औऱ ये पर्यावरण
कल-कल बहते ये झरने का पानी
हरी भरी सी धरती और नजारे इंद्रधनुष के।

कलरव करते गगन में पंछी
राग सुनाते है जीवन के
मस्त पवन के झोंके में
यूँ ही बहते जाते है।

फूलों से रसपान करने
आते है कितने भौरे
घूम-घूम कर कली-कली पर
देखो कैसे मंडराते है।

बूंदे भी देखो बारिश की
सबके मन को भाती है
धरती को हरा-भरा कर
दे जाती है जीवन सब को।

ये धरती कितनी मनमोहक है
प्राकृत और ये पर्यावरण
हमको जीवन देने वाली प्राकृत का
सब को मिलकर संरक्षण करना है।

अदित्य मिश्रा
9140628994
दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *