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प्रेम में पागल हो गया

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प्रेम में पागल हो गया

रूप देख मन हुआ प्रभावित,
हृदय घायल हो गया।
सुंदरी क्या कहूं मैं,
तेरे प्रेम में पागल हो गया।

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भूल गया स्वयं को,
नयनों में बसी छवि तेरी।
हृदयाकांक्षा एक रह गई,
बाहों में तू हो मेरी।

नर शरीर मैंने त्याग दिया,
जीवन की आशा है तू ही तू।
तेरे प्रेम की कविता,
तेरे प्रेम की ग़ज़ल लिखूं।

कवि विशाल श्रीवास्तव
जलालपुर फ़र्रूख़ाबाद।

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