प्रेमिका के लिए कविता –

न जाने क्यों आज तुम्हे देखने का बड़ा मन है
लिख कर जज़्बात खत में तुम्हे भेजने का बड़ा मन है

हाथों में हाथ डाले हम तुम भी घूमते थे
फ़ुरसत के उन पलों को ढूंढने का बड़ा मन है

कागज़ में नाम लिख कर कभी उसको फाड़ते थे
तेरे नाम के वो ही पन्ने समेटने का बड़ा मन है

उस वक़्त जब तू मुझको दिल फेंक बोलती थी
आज फ़िर से तुमपे ये दिल फेंकने का बड़ा मन है

हम जिनमें में देखते थे गहरा सा इक समुंदर
उन आँखों में कसम से डूबने के बड़ा मन है

कभी आ तू पास मेरे मुझको गले लगा ले
तेरी बाहों में पिघलकर टूटने का बड़ा मन है

जब जब था तुमको देखा बेख़ुद से हो गए थे
तेरे प्यार में फ़िर से बहकने का बड़ा मन है

हमने सुना है कि तुम बस प्यार बांटते हो
दरिया दिली तुम्हारी लूटने का बड़ा मन है

तुझसे ही सुख के पल थे अब तो हैं दुख की घड़ियां
कांधे पे सर ये रखकर सिसकने का बड़ा मन है

जिसे देख हम हैं जीते दिलकश तेरा तबस्सुम
मुस्काते उन लबों को चूमने का बड़ा मन है

‘चाहत’ भरी निगाह से बस मुझको देख लेना
तेरी चाहतों में फ़िर से भीगने का बड़ा मन है

**************************************

नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
झाँसी


Posted

in

by

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *