प्रेरणा- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

मै
किस्सों को
प्रेरणा का
स्रोत
नहीं मानता

मै झांकता हूँ
जिंदगी में उनकी
जिन्हें
प्रेरणा स्रोत बनने में
उस स्तर
तक पहुँचने में
अपना
सम्पूर्ण जीवन
सर्वस्व समर्पित
करना पड़ा
जिनका जीवन
हर क्षण
हर पल की
मुसीबतों
मुश्किलों
में भी
स्वयं को
संभाल

गिरने की प्रवृत्ति
से दूर
डगमगाने की
प्रवृत्ति
से दूर
संभलना
और
दोबारा
बुलंद हौसलों
का आसरा
लेकर
अग्रसर होना
हर पल
एक आदर्श
स्थापित करना

प्रेरणा
स्रोत बन उभरना
पीछे
मुड़कर देखना
इनकी नियति
नहीं होती

ये कायम करते हैं
नित नई – नई मिसालें
नित नए – नए
आदर्श
ये रुकते नहीं
ये पथ प्रदर्शक
बन
स्थापित करते हैं
नए आयाम
वे करते
हैं
आदर्शों का विस्तार

संकोच और संकुचन में
इनका विश्वास नहीं
ये निश्चल मन से
अपनी
इच्छाओं का
गला घोंट
उन पर
अंकुश लगा
स्वयं को
हर परिस्थिति
से
जूझने के लिए
करते हैं तैयार

ये मानसिक, शारीरिक
सामाजिक व धार्मिक
तौर पर
स्वयं को परिपक्व कर
बढते हैं
अग्रसर होते हैं
तब तक
जब तक
मंजिल
इनके क़दमों का
निशाँ नहीं हो जाती

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