कविता प्रकाशित कराएँ

लातन को जो भूत हियन पै पर कविता


जिसके मन मै ऐंठ भरै बौ, अपने आगे किसकौ गिनिहै
लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।

अंधो बाँटै आज रिबड़ियाँ, अपनिन -अपनिन कौ बौ देबै
नंगे- भूखे लाचारन की, नइया कौन भलो अब खेबै
आँगनबाड़ी मै आओ थो, इततो सारो माल बटन कौ
बच्चन कौ कछु नाय मिलो पर, औरन के घर गओ चटन कौ

जिसको उल्लू सीधो होबै,बौ काहू कौ कब पहिचनिहै
लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।

सरकारी स्कूल बनो जब, खूबै गओ कमीसन खाओ
कछु लोगन ने मिली भगत से, जिततो चाहो उततो पाओ
स्कूलन पै जिततो खर्चा, बा हिसाब से नाय पढ़ाई
बरबादी पैसन की होबै, जनता की लुट जाय कमाई

आसा बहू न दिखैं गाँव मै, जच्चा को दुख- दरद न जनिहै
लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।

हड़प लेय आधे रासन कौ, कोटेदार बनो है दइयर
मनरेगा मै खेल हुइ रहो,रोबैं बइयरबानी बइयर
अफसर नाय सुनैं काहू की, लगैं गाँव मै जो चौपालैं
घोटाले तौ होबैं केते, लेखपाल जब चमचा पालैं

जौ लौ रुपिया नाय देव तौ,काम न कोऊ अपनो बनिहै
लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।

होय इलक्सन पिरधानी को,अपनी धन्नो होय खड़ी है
पंचायत को सचिब हियाँ जो, बाकी बासे आँख लड़ी है
बी.डी.सी. मै बिकैं मेम्बर,तौ ब्लाक प्रमुख बनि पाबै
और जिला पंचायत मै भी, सीधो-सादो मुँह की खाबै

होय पार्टी बन्दी एती, बात- बात पै लाठी तनिहै
लातन को जो भूत हियन पै,बातन से बौ नाहीं मनिहै।

रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली, (उ०प्र०)


Posted

in

by

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *