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पर्यावरण एक चिंतन

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पर्यावरण एक चिंतन

prakriti-badhi-mahan
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सभ्यता का हाय कैसा ये चरण है ।
रुग्ण जर्जर हो गया पर्यावरण है ।
लुब्ध होकर वासना में लिप्त हमने,
विश्व में विश्वास का देखा मरण है।
लक्ष्य जीवन का हुआ ओझल हमारा,
तर्क का,विज्ञान का,धूर्तावरण है ।
द्रव्य संग्रह में सुखों की कामना तो,
ज्ञान का ही आत्मघाती आचरण है ।
हो न अनुशासन न संयम तो समझ लो,
मात्र,जीवन मृत्यु का ही उपकरण है ।
भाग्य है परिणाम कृत्यों का सदा ही,
कर्म की भाषा नियति का व्याकरण है ।
नीर,नीरद,वायु मिट्टी हैं विकल तो,
सृष्टि के वरदान का ये अपहरण है ।
पेड़-पौधे संग करुणा की लताएँ,
कट रहीं, संवेदनाओं का क्षरण है ।
है तिमिर पर ज्योति की संभावना भी,
सत्य-शिव-सौंदर्य, ही केवल शरण है ।
कर प्रकृति-उपहार का उपयोग हितकर,
प्रेम का प्रतिबिम्ब ही पर्यावरण है ।



रेखराम साहू

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