खप-खप मरता आमजन
खप-खप मरता आमजन, मौज उड़ाते सेठ।
शीतकाल में ठिठुरता, बहे पसीना जेठ।।
खून-पसीना बह रहा, कर्मठ करता कार।
परजीवी का ही चला, लाखों का व्यापार।।
कमा-कमा कर रह गया, मजदूरों का हाथ।
पूंजी ने फिर भी किया, सेठों का ही साथ।।
अंधी चक्की पीसती, कुत्ता चाटे चून।
कर्मठ तेरी कार से, सेठ कमाते दून।।
नहर सड़क पुल बन गए, तेरा श्रम परताप।
सदियों से है झेलता, फिर भी तू संताप।।
तुझबिन किसका कब सरे,फिर भी तू बेगोर।
ले चाबुक सिर पर खड़े, तेरी श्रम के चोर।।
सिल्ला कर्मठ का करो, सदा मान-सम्मान।
कर्मठता ही हो सदा, मानव की पहचान।।
-विनोद सिल्ला
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