पंजाब धरा का सिंह शूर

कविता संग्रह
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विधा-पदपादाकुलक राधेश्यामी छंद पर आधारित गीत

पंजाब धरा का सिंह शूर, फाँसी पर हंसकर झूल गया।
बस याद उसे निज वतन रहा,दुनियादारी सब भूल गया।

माँ की गोदी का लाल अमर,था गौरव पितु के मस्तक का।
उस आँगन देहरी द्वार गली,है नमन तीर्थ के दस्तक का।

था सृष्टा का वह अमर दीप, जिस पर दिनमणि भी झूम गया।

थी वन्दनीय शुभ बेला वह,जिसमे था जन्म लिया उसने।
बन्दूको का जो बना कृषक , काटेगा क्या जाना किसने।

उस कृषक शुर की धरा ऋणी,जो असमय ही दृग मूँद गया।

उस दिन का दिनकर ले आया, अँजुरी में कुछ तम के टुकड़े।
पछिताता पथ पर चलता था,थे म्लान नक्षत्रों के मुखड़े।

उस काल काल भी रोया था,जिसमे भागां ने कूँच किया।

एक बार मृत्यु भी सिहर गयी,देखी उसकी जब निर्भयता।
उर स्वाभिमान मुख ओजपूर्ण, काँपी जल्लादी निर्दयता।

उस इन्कलाब के नारे से, धरती अम्बर सब गूँज गया।


भागां —-भगत सिंह के बचपन का नाम
काल- समय
काल -मृत्यु के लिये प्रयोग किया है।

अर्चना बाजपेयी
हरदोई उत्तर-प्रदेश।

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