प्यार एक दिखावा

न कसमें थीं न वादे थे
फिर भी अच्छे रिश्ते थे
आखों से बातें होती थीं
कुछ कहते थे न सुनते थे
न आना था न जाना था
छत पर छुप कर मिलते थे
वो अपनी छत हम अपनी छत
बस दूर से देखा करते थे
अब कसमें है और वादे है
और प्यार एक दिखावा है
आखों से कुछ कहना मुश्किल
होंठ ही सब कुछ कहते हैं
दिल में  जाने क्या है किसके
ऊपर से प्रेम जताते हैं
बात बात पर लड़ते हैं
इक दूजे पर हक जताते हैं
छत पर अब कैसा मिलना
बंद कमरे ढूँढा करते हैं
प्यार अब व्यापार बन गया
रिश्ते बदले मतलब में
दिल में जाने क्या बसता है
इक दूजे की खातिर
समझ न कोई पाता है
परिवार और समाज  के डर से
बेमन से रिश्ते निभाते हैं ।।।।।।

राकेश नमित


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