श्रीराम पर कविता – बाबूराम सिंह

कविता

भक्त वत्सल भगवान श्रीराम
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सूर्यवंशी सूर्यकेअवलोकि सुचरित्र -चित्र,
तन – मन रोमांच हो अश्रु बही जात है।
सुखद- सलोना शुभ सदगुण दाता प्रभु ,
नाम लेत सदा भक्त बस में हो जातहैं।

नाम सीताराम सुखधाम पतित -पावन ,
पाप-ताप आपो आप पलमें जरि जात है ।
पामर ,पतित अरू पातकी अघोर हेतु ,
सेतु बनी तार बैकुण्ठ को ले जात है।

नेम तार नरकिन के होत ना बिलम्ब नाथ,
शरणागत आपही अधम के लखात है।
तारो कुल रावन पतित पावन श्रीराम ,
दियो निज धाम आप स्वामी तात मात है।

गणिकाअजामिल,गज,गिध्द उबारो नाथ,
आरत पुकार सुनि नंगे पांव दौडी़ जात है।
आप हर वेष देश काल में कमाल कियो,
भक्त हेतु खम्भ से नरसिंह बन जात है।

धन्य अवध राजा – रानी दरबार -कुल,
धन्य श्रीराम विश्वामित्र संघ जात है।
राक्षस संहार और अहिल्या उध्दार करी,
तोड़ के पिनाक टारे जनक संताप है ।

कैकयी कृपासे घर छोडे़ सत्य कृपासिन्धु,
विप्र सुर ,धेनु हेतु छानत पात -पात हैं।
धीमर से प्रीति -रीति खाये शबरी के बेर,
प्रेम प्रधान में ना भेद जात – पात है।

कृपा के सिन्धु करी कृपा सभी पर सदा,
निज पद ,रुप दे के सदा मुस्कात हैं ।
कण-कणके वासीअघनाशी सर्वत्र आप,
निज में निहारने से आप ही लखात हैं।

भगवन सदा ही हृदय में बिराजो नाथ,
निज में मिला लो बस इतनी सी बात है।
सन्त प्रतिपाल बान रुप को ध्यान करि,
अपना लो प्रभु ” बाबूराम ” बिलखात है।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़क खुटहाँ, विजयीपुर(भरपुरवा )
जि0-गोपालगंज(बिहार)८४१५०८
मो०नं० – ९५७२१०५०३२
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