राजकिशोर धिरही के बेहतरीन बाल कवितायेँ
बाल दिवस पर बेहतरीन बाल कवितायेँ राजकिशोर धिरही के द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे हैं जो आपको बेहद पसंद आयेगी.
बाल दिवस पर बेहतरीन बाल कवितायेँ राजकिशोर धिरही के द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे हैं जो आपको बेहद पसंद आयेगी.
- बाल कविता-लंगूर
- बाल कविता-घड़ियाल
- बाल कविता-डायनासोर
- बाल कविता-बंदर का अस्पताल
- बाल कविता-अ से अनार
- बाल कविता-ककड़ी
- बाल कविता-उल्लू
- बाल कविता-बंदर
- बाल कविता- दिव्यांगों को पढ़ने देना
- बाल कविता- ऐ भाई
- बाल कविता-जिराफ
- बाल कविता-गैंडा
- बाल कविता-हाथी
- बाल कविता-बत्तख
- बाल कविता-गोल-गोल
- बाल कविता-बकरी
- बाल कविता-जोंक
- बाल कविता-गोह
- बाल कविता-मधुमक्खी चौपाई

बाल कविता-लंगूर
एक लंगूर छत पर आया
उछल कूद कर धूम मचाया
चीखा उदित,अनिस चिल्लाया
मंकी आया मंकी आया
विद्या बोली नीचे आओ
बिस्किट चॉकलेट सब खाओ
वह लंगूर उतर कर आया
बिस्किट,चॉकलेट सब खाया
बच्चों ने बोला फिर आना
केला वेला सब कुछ खाना
आम पेड़ पर चढ़ा लंगूर
उछल कूद कर हो गया दूर
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-घड़ियाल
सरीसृप वर्ग में
आता घड़ियाल
मछली रोज पकड़
खाता घड़ियाल
लम्बी पूँछ
थूथन लम्बा रहता
धूप जाड़ा वर्षा
सबकुछ सहता
जल थल में
करता रहता है वास
थूथन में रहे
घड़े आकृति खास
आँखों से अपने
आँसू बहाता
घड़ियाली आँसू
सदा कहलाता
मगरमच्छ के जैसे
होता रूप
जल में रहता
लेता जाकर धूप
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-डायनासोर
करोड़ो साल पहले जब,
डायनासोर रहते थे।
विशालकाय जीव उसको,
इस धरती का कहते थे।
जीवाश्म मिला है इनके,
अंडे भी तो पाए हैं।
वैज्ञानिक जीवाश्म देख,
पंख वाले बताए हैं।
दो पैरों से ही चलते,
माँसाहारी रहते थे।
शोध हुआ तो पता चला,
खूँखार उसे कहते थे।
संग्रहालय में रखे हैं,
कंकाल देख लो जाकर।
बड़ी छिपकली कहते,
जीते थे पत्ती खाकर।
विलुप्त हो गया धरा से,
अवशेष इसके हर ओर।
बड़े आकार वाले थे,
ज्ञात रहे डायनासोर।
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-बंदर का अस्पताल
भालू को सर्दी खाँसी
बहुत तेज था बुखार
बंदर ने दी जब गोली
फिर हुआ बहुत सुधार
भालू से बोला बंदर
मास्क को लगाया कर
घबराने की बात नहीं
दूर से बताया कर
स्वस्थ हुआ जब से भालू
बताया उसने हाल
जंगल में बनवाया है
बंदर ने अस्पताल
जंगल का राजा सुनकर
सच का पता लगाया
बंदर के अस्पताल में
हाथी, भर्ती पाया
अस्पताल में आकर के
एक सुई लगवाते
बाँह पकड़ कर के अपनी
उई-उई सब गाते
शेर ने कहा जंगल में
सच में है ये कमाल
जंगल में बनवाया है
बंदर ने अस्पताल.
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-अ से अनार
अ से अनार आ से आम
पढ़ना लिखना सुबह शाम
इ से इमली ई से ईख
मातृ कहती जल्दी सीख
उ से उल्लू ऊ से ऊन
मन में चलती बस ये धुन
ए एड़ी ऐ से ऐनक
रोज पढूँ आखिर कब तक
ओ से ओखली बताते
औ से औरत समझाते
अं से अंगूर पढूँ जब
अंत में अ: तक कहूँ सब
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-ककड़ी
हरी-हरी ककड़ी को खाओ
तन से गर्मी दूर भगाओ
टेढ़ी-मेढ़ी इसकी सूरत
पोषक तत्व सबकी जरूरत
पोटेशियम पोषक विटामिन
खाते रहना हर दो-दो दिन
ककड़ी करती कब्ज को दूर
पानी इसमें मिले भरपूर
खाने में ककड़ी मजेदार
त्वचा को बनाती चमकदार
घर लेकर के आओ ककड़ी
जी भर के तुम खाओ ककड़ी
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-उल्लू
बड़ी-बड़ी आँखों का उल्लू
सिर को खूब घुमाता उल्लू
बुद्धिमान पक्षी है उल्लू
दिन में प्रायः सोता उल्लू
कीट,पतंगे खाता उल्लू
चूहे भी अति भाता उल्लू
करता डरावनी आवाजें
निशि में अक्सर उड़ता उल्लू
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-बंदर
बंदर को जब लगी प्यास
चला गया कुएँ के पास
देखा पानी को अंदर
झाँकने लगा वह बंदर
देख-देख अपनी छाया
उछल-कूद खूब मचाया
बंदर ने दाँत दिखाया
हूबहू प्रतिकार पाया
बंदर भूल गया प्यास
बच्चे करने लगे उपहास
राजकिशोर धिरही
बाल कविता- दिव्यांगों को पढ़ने देना
दिव्यांगों को पढ़ने देना
उनको आगे बढ़ने देना
बाल अपाहिज संकट झेले
संग बैठ कर उनसे खेले
साथ पढ़ाई मिलकर करते
सपने वो भी देखा करते
दिव्यांग हमारे हो साथी
रहे खिलौने घोड़े हाथी
भेद-भाव छोड़ बने समता
दिव्यांगों में अद्भुत क्षमता
जाकर के डॉक्टर दिखलाना
मन उनके उजियारा लाना
बाल अपाहिज जब मुस्काएं
तन-मन में उमंग हो जाएं
राजकिशोर धिरही
बाल कविता- ऐ भाई
ऐ भाई कुछ तो मेरी भी अब सुन
गाय देती दूध भेड़ से है ऊन
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ऐ भाई बकरी बकरा बड़े खास
ऊँचे दाम में बिकते इनके माँस
ऐ भाई पी ले कुछ ज्ञान की घूँट
रेगिस्तान का जहाज होते ऊँट
ऐ भाई जानवर गधे हैं महान
इनपर ढ़ोते पत्थर ईंट सामान
ऐ भाई खेत में हल खींचे बैल
होते हैं ज्यादा ताकतवर गुसैल
ऐ भाई बलशाली होते घोड़े
ताँगा गाडी को वह खींचे दौड़े
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-जिराफ
ऊँची कद काठी वाला होता है जिराफ
लंबी गर्दन वाला होता है हर जिराफ
टांगें जीभ लंबी,प्यारा जानवर जिराफ
बेहद शर्मिला जानवर होता है जिराफ
धीमी आवाज में ही बोलता है जिराफ
फल फूल पत्तियाँ खाता रहता है जिराफ
जन्म के दिन ही चलता दौड़ता है जिराफ
पैर मोड़ कर पानी को पीता है जिराफ
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-गैंडा
ताकतवर कहलाता है गैंडा
दौड़ कर भाग जाता है गैंडा
आराम बहुत फरमाता गैंडा
आलसपन को वह भाता गैंडा
हरी घास पत्ती खाता गैंडा
अपने सींग से डराता गैंडा
कीचड़ में ही रह जाता गैंडा
धूल मिट्टी में नहाता गैंडा
कुरूप जानवर कहाता गैंडा
चिड़ियाघर में दिख जाता गैंडा
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-हाथी
भारी भरकम होता हाथी
मोटे गद्देदार पाँव
उनके साथ महावत आते
कभी-कभी हमारे गाँव
बच्चे देखा करते हाथी
जोर-जोर से चिल्लाते
हा हा हा हा हँसते रहते
ताली भी खूब बजाते
सूँड हिलाता रहता हाथी
पोखर से पीता पानी
पत्ते-डाली खाते रहता
करता रहता मनमानी
बड़ी जोर से यह चिंघाड़े
बच्चे सुन कर डर जाते
हाथी आया सुन-सुन के
दर्शन करने को आते
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-बत्तख
सुंदर-सुंदर प्यारे बत्तख
सबके मन को ये भाते हैं
तैर-तैर कर पोखर में ये
दूर-दूर तक भी जाते हैं
चपटी चोंच सपाट बने हैं
पैर होते हैं जालीदार
काले नीले स्वेत रंग के
इनसे करते हैं सभी प्यार
किट पतंगों को खाते रोज
रहते हैं सदा जल में मस्त
उल्टा कर दे इनको कोई
हो जाते हैं बहुत ही लस्त
क्वेक-क्वेक करते ही रहते
सुन लें मानव कभी भी शोर
पोखर में जाने को बत्तख
उठ जाते हैं सदा ही भोर
सैकड़ो अंडे देती सदा
बत्तख को पाला करते हैं
बत्तख पालन करते हैं जो
दाने भी डाला करते हैं
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-गोल-गोल
गोल-गोल पहिये
गोल बनी है धरती
गोल गेंद होते
गोल घूमे आरती
गोल वृत्त होते
गोल काँच चूड़ी
गोल बने थाली
गोल-गोल हो पूड़ी
गोल टिफिन होते
गोल ग्लोब भी रहते
गोल सूरज चाँद
गोल-बोल भी कहते
गोल-गप्पे बने
गोल खेल गोटी
गोल पहिये चले
गोल बने सब रोटी
राजकिशोर धिरही
छत्तीसगढ़
बाल कविता-बकरी
बाड़ी में घुस आती बकरी
सब्जी भाजी खाती बकरी
डंडा लेकर दौड़े दादा
दूर भगाने करते वादा
में में में बकरी चिल्लाती
उछल कूद कर धूम मचाती
बच्चे उसको पास बुलाते
आओ आओ सब चिल्लाते
बकरी कुछ समझ नहीं पाती
भीड़ देख के वह डर जाती
बच्चे हा-हा करते सारे
चिल्लाकर ताली भी मारे
बच्चे कहते बकरी प्यारी
लगती हमको सबसे न्यारी
राजकिशोर धिरही
बाल कविता-जोंक
जोंक देख के
डर जाते हैं बच्चे
तन से चिपके
घबराते हैं बच्चे
रक्त चूसक जोंक को
कहते बच्चे
पास आए
दूर रहते सब बच्चे
जोंक की होती है
चपटी आकार
जोंक करती है सदा
रक्त आहार
जोंक तेल भी
बनाते हैं कुछ लोग
जोंक थेरेपी
खूब भगाते रोग
घाव होने पर
जोंक चिपकाते हैं
गंदे रक्त जोंक से
हटवाते हैं
पोखर में तैरती
रहती है जोंक
मुनिया कहती
अनोखी होती जोंक
राजकिशोर धिरही
जाँजगीर
छत्तीसगढ़
बाल कविता-गोह
गोह जंगल में दिख जाती है
मछली मेंढक बहुत खाती हैं
छिपकली जैसी यह लगती है
दौड़कर ये भागा करती है
जीभ अपनी खूब लपलपाती
देख कर किसी को भाग जाती
दीवारों में चिपक जाती है
पकड़ को मजबूत बनाती है
गोह पकड़ बांध फेंका करते
महल में फिर चढ़ जाया करते
गोह देखकर डर नहीं जाना
अपनी दूरी जरूर बनाना
राजकिशोर धिरही
छत्तीसगढ़
बाल कविता-मधुमक्खी चौपाई
मधुमक्खी है कीट कहाती
छत्ते में वह मोम बनाती
सबने इनकी सुनी कहानी
एक रहे मधुमक्खी रानी
फूलों से ही शहद बनाते
औषधि मान सभी हैं खाते
नर नारी सौंदर्य सदा पाते
खाँसी सर्दी दूर भगाते
मधुमक्खी से हम सब डरते
झुंड बनाकर हमला करते
छेड़े बिना नहीं ये काटे
मधुमक्खी भरते फर्राटे
उड़-उड़ कर इधर-उधर जाते
पेड़ शाख में वास बनाते
घर दीवार बनाते छत्ता
देख लगे वह कागज गत्ता
मधुमक्खी होती हैं प्यारी
इसमें भी होते नर-नारी
लाकर इसको घर में डाले
रोजगार करने को पाले
राजकिशोर धिरही
छत्तीसगढ़