रिमझिम वर्षा बूँद का संग्रह करो अपार
रिमझिम वर्षा बूँद का संग्रह करो अपार
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पानी बरसे नित्य ही,
आये दिन बरसात।
जल से प्लावित है धरा,
लगे फसल मत घात।।
बादल आज घुमड़ रहे,
करे ध्वनित अति शोर।
बर्फ गिरे बरसात में,
देख चकित हैं मोर।।
वर्षा जल से तरु हरित,
रूप शोभायमान।
हरे भरे चहुँ ओर से,
दिव्य दिखे खलिहान।।
नित्य कृषक कर प्रार्थना,
ईष्ट विनय करजोर।
देख बरसते मेघ को,
होता भाव विभोर।।
रिमझिम वर्षा बूँद का,
संग्रह करो अपार।
कहे रमा ये सर्वदा,
बुझे प्यास संसार।।
*~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”*
*रायपुर (छ.ग.)*