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रुकना भी है चलना- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

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रुकना भी है चलना

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हमें तो बस यही सिखाया गया है चलते रहो चलते रहो
बस चलते ही रहो चलते ही रहने का नाम है जिंदगी
रुक जाने से जिन्दगी भी रुक जाएगी तुम्हारी
उनके लिए विरोधाभासों में जीना जैसे जिंदगी ही नहीं होती
मैं कहूँ रूकने से जिंदगी सँवर जाती है तो आप हँसेंगे
आपने कभी रुकना सीखा ही नहीं
आपने कभी समझा ही नहीं रुकने का दर्शन
आपकी नज़रों में नकारात्मक सोच की ऊपज है रुक जाना
रुकना उनके शान के ख़िलाफ़ है
आप रुकने के लिए उन्हें कहें और मज़ाल है कि वे रुकें
उनके ज्ञान, धर्म और शिक्षा के ख़िलाफ़ है आपका रुक जाना
रुकना बुद्धिमानी है अगर जिंदगी के मुहाने पर मौत खड़ी हो
चलना फिर तेज़ चलना फिर और तेज़ चलना फिर दौड़ने लगना जिंदगी नहीं होती
जिंदगी हमारी रफ़्तार में कतई नहीं होती
जैसे पूरा-पूरा जागने के लिए पूरी-पूरी गहरी नींद में सोना ज़रूरी होता है
वैसे ही चलायमान जिंदगी के लिए ज़रूरी होता है रुकना
बताओ आखिर सोए बिना कैसे जागोगे और कब तक जागोगे..?
सत्य कई बार खुली आँखों से दिखाई नहीं देता
साफ़-साफ़ दूर-दूर तक देखने के लिए
जरूरी होता है आँखों को बंद करके देखना
आँख बंद करके चलते रहने से अच्छा है रूक जाना
चलते रहने वालों के ख़िलाफ़ है ट्रैफ़िक की लाल बत्ती पर रूक जाना
रुकना समझदारी है रुकना ऊर्जा का केंद्र है रुकना बाहर और भीतर देखना है रुकना चलने की प्रेरणा है
आप मानो या ना मानो सहीं मायने में रुकना भी चलना है।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479

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