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सृजन पर कविता-बाबू लाल शर्मा,बौहरा

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सृजन पर कविता

सृजन कर्म सूरज करे, सविता कह दें मान।
चंद्र धरा की रोशनी, जग मण्डल की शान।।

दूजी सृजक वसुंधरा, जिस पर निपजे जीव।
सृजन करे जल संग से, बरसे अम्बर पीव।।

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उत्तम सृजक किसान है, भरता सब का पेट।
अन्न फसल फल फूल से, चाहे वन आखेट।।

कृष्ण राधिका रास भी, जिसे न आए रास।
अश्व रास बिन वे मनुज, वन्य रास आभास।।

प्रभु गुरु कवि माता सृजक, सृजे सत्य इंसान।
शर्मा बाबू लाल जग, करे सृजन सम्मान।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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