सब कुछ भूल जाती है माँ
सब कुछ भूल जाती है माँ
इतनी बड़ी हवेली में
इकली कैसे रहती माँ
बड़ी बड़ी संकट को भी
चुप कैसे सह लेती माँ ।।
कमर झुकी है जर जर काया
फिर भी चल फिर लेती माँ
मुझे आता हुआ देख कर
रोटी सेक खिलाती माँ ।।
खाँसी आती है माँ को
चादर मुँह ढक लेती माँ
मेरी नींद न खुल जाए
मुँह बंद कर लेती माँ ।
जब उलझन में होता हूं
चेहरा देख समझती माँ
पास बैठ कर चुपके से
शीश हाथ धर देती माँ ।।
खुद भुनती बुखार में पर
मेरा सिर थपयाती माँ
गर्म तवे पर कपड़ा रख
छाती सेकती मेरी माँ ।।
कभी न मांगे मुझसे कुछ
जीवन कैसे जीती माँ
थोड़ा थोड़ा बचा बचा कर
मुझे सभी दे देती माँ ।।
किसी बात के न होने पर
चुप हो कर रह जाती माँ
अगले पल लिपट गले से
सब कुछ भूल जाती है माँ ।।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर