संभालना आता है -डा० भारती वर्मा बौड़ाई
जब-तब
जीवन में
निभाई होंगी
जिम्मेदारियाँ अपनी
संभाले होंगे
बहुत से रिश्ते
पर, क्या
कभी संभाला
अपने आप को
औरों के लिए कभी….?
सोच कर देखना,
बड़ा
कोमल है हृदय
जो ठेस लगते ही
टूट जाता है
जोड़े से
न जुड़ा तो
कहाँ-कहाँ
भटकाता है
तंबाकू, ड्रग्स, मदिरा की
अंधी गलियों में
ले जाता है
जिसमें भरमाया व्यक्ति
अलौकिक आनंद के जाल में
उलझता चला जाता है
रिश्ते, अपने
स्वास्थ्य कहीं दूर
छूटते जाते हैं
जो होते हैं साथ
दिखते हैं मित्र
पर होते हैं शत्रु
कहाँ कोई समझ पाता है…
चिकित्सालयों के चक्कर लगाते
जब थकने लगते हैं पाँव
बेबस होने लगते अपने
बिस्तर पर पड़े हुए
दिन लगने लगते हैं भार…
तब समझऔर सार-संभाल
होते सब व्यर्थ,
रहे हृदय
धड़कता अपने हिसाब से
बहे धमनियों में रक्त
सामान्य प्रवाह से
रहे काम करता अपना
लीवर ठीक-ठीक,
बने न बोझ
किसी अपने पर,
स्वस्थ रह कर
बाँट सके ख़ुशियाँ सबको
तो कहो
तंबाकू को
नहीं कोई स्थान अब तुम्हारा
हमारे जीवन में
अब जियेंगे तुम्हारे बिना
अपनी शर्तों पर…
तुम देखोगे
दूर से
हारे हुए स्वयं को।
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई