सायली विधा में रचना – मधुमिता घोष

बचपन
बीत गया
आई है जवानी
उम्मीदें बढ़ी
सबकी.
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चलो
उम्मीदों के
पंख लगा कर
छू लें
आसमाँ.
आँखें
भीगी आज
यादों में तेरी
खो गये
सपने.
सपने
खो गये
इन आँखों के
बिखर गई
आशायें.
मधुमिता घोष “प्रिणा”