बसंत के मौसम पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना
बसंत के मौसम पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना
कोयल की मीठी बोली में,ऐसा भाव समाता है
अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
बौर आम के पेड़ों पर है,जिसकी मधुर गंध बिखरी
सरसों पर पीले फूलों से,इतनी सुंदरता निखरी
आज हरी साड़ी पर जिसने,ओढ़ी है पीली चादर
ऐसी धरती पर पाते हैं,कामदेव-रति अब आदर
भौंरा तो मकरंद यहाँ पी,मस्ती में भर जाता है
अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
वृक्ष, लताओं, पौधों पर हैं,तरह-तरह के फूल खिले
मँडराती तितलियाँ वहाँ पर,नर- नारी भी हिले-मिले
मधुमक्खी भी फूलों से अब,जी भर रस को पाती हैं
इसीलिए इस मौसम में वे,मधु भी खूब बनाती हैं
चिड़ियों का चूँ- चूँ करना भी, सबको इतना भाता है
अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
विद्या की देवी का पूजन,जो बसंत में करते हैं
उनकी बुद्धि ठीक रहती है,बिगड़े काम सँवरते हैं
सुस्ती और उदासी अब तो,नहीं कहीं भी दिखती है
आज लेखनी अनायास ही,गौरव- गाथा लिखती है
पीले कपड़े पहन यहाँ पर,कोई रास रचाता है
अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
आज रबी की फसल देखकर, सब किसान हैं झूम रहे
जीवन में रस जिनके भरता,वे किस्मत को चूम रहे
घर- घर में उत्सव है होता,आज सुहाना पवन चला
सूरज भी कुछ गर्मी देता,लगता सब के लिए भला
मधुरिम सपनों को लेकर जो, आज यहाँ पर आता है
अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
कुमुद- निवास’
बरेली, (उ० प्र०)