सेदोका -प्रदीप कुमार दाश दीपक
सेदोका -प्रदीप कुमार दाश दीपक
01)
कोमल फूल
सह जाते हैं सब
व्यक्तित्व अनुकूल
वरना कभी
मसल कर देखो
लहू निकालें शूल ।
02)
कंटक पथ
सफर पथरीला
साथी संग जीवन
कर लो साझा
होगा लक्ष्य आसान
मिलेगी सफलता ।
03)
मरु प्रदेश
मेघों का आगमन
है, जीवन संदेश
सूखे तरु का
तन मन हर्षित
अलौकिक ये वेश ।
04)
बस गईं वे —-
खयालों में जब से
भले वो साथ नहीं
पर हम तो
उनके साथ रहे
कभी अकेले नहीं ।
05)
यादों के साये
हवा के संग संग
मानो खुशबू हैं ये
भीतर आते
बंद कर लो चाहे
खिड़की दरवाजे ।
06)
क्रय-विक्रय
जीवन के सफर
कुछ नहीं हासिल
केवल व्यय
जिम्मेदारी के हाट
गिरवी पड़े ठाठ ।
07)
बड़े अजीब
खण्डहर निर्जीव
देखने आते लोग
चले जाते हैं
यही अकेलापन
है उसका नसीब ।
{08}
पेड़ों का दुःख
कुल्हाड़ी की आवाज
सुन कर मनुष्य
रहता चुप
धूप से तड़पती
बूढ़ी पृथ्वी है मूक ।
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{09}
मौसमी मार
पेड़ हुए निर्वस्त्र
पत्तियाँ समा गईं
काल के गाल
फूटो नई कोंपलें
क्यों करो इंतजार ?
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□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”