शिव – मनहरण घनाक्षरी

उमा कंत शिव भोले,

डमरू की तान डोले,

भंग संग  भस्म धारी,

नाग कंठ हार है।

शीश जटा चंद्रछवि,

लेख रचे ब्रह्म कवि,

गंग का विहार शीश,

पुण्य प्राण धार है।

नील कंठ  महादेव,

शिव शिवा एकमेव,

शुभ्र वेष  मृग छाल,

शैल ही विहार है।

किए काम नाश देह,

सृष्टि सार  शम्भु नेह,

पूज्य  वर  गेह   गेह,

चाह भव पार है।

आक चढ़े बेल भंग,

पुहुप   धतूरा   संग,

नीर  क्षीर अभिषेक,

करे जन सावनी।

कावड़ धरे  है भक्ति,

बोल बम शिव शक्ति,

भाव से  चढाए भक्त,

मान गंग पावनी।

वृषभ सवार  प्रभो,

सृष्टि करतार विभो,

हिम गिरि  शैल पर,

छवि मनभावनी।

राम भजे शिव शिव,

शिव रखे  राम हिय,

माया  हरि त्रिपुरारि,

नीलछत्र छावनी।

बाबू लाल शर्मा बौहरा ‘विज्ञ’

सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

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