श्याम छलबलिया – केवरा यदु

श्याम छलबलिया कइसे भेज दिहे व पाती।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।
ऊधो आइस पाती सुनाइस।
पाती पढ़ पढ सखी ला सुनाईस।
पाती सुन के
पाती सुन के धड़कथे मोर छाती।।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
एक जिवरा कहिथे जहर मँय खातेंवं।
श्याम के बिना जिनगी ले मुक्ति पातेंवं
एक जिवरा कहिथे
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एक जिवरा कहिथे मँय देहूँ काशी।।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
जिवरा कहिथे श्याम बन बन खोजँवं।
बइठ कदम तर जी भर के रो लंव।
जिवरा मोर कहिथे
जिवरा मोर कहिथे लगा लेऊँ फांसी।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
मन मोर दस बीस नइहे कान्हा
साँस के ड़ोरी बंधे तोरे संग कान्हा।
जियत नहीं पाहू
जियत नहीं पाहू मोला दे देहू माफी।।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
श्याम छलबलिया कइसे भेज दिहेव पाती।
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी
तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी
कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे
केवरा यदु “मीरा”
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