सिमटी हुई कली

सिमटी हुई कली

सिमटी हुई कली ,मेरे आंगन में खिली।
शाम मेरी ढली,तब वह मोती सी मिली।
रोशनी छुपाए जुगनू सा
सारी सारी रात मेरे घर में जली ।

चंचलता ऐसी जैसे कोई पंछी
ओढ़े हुए आसमां की चिर मखमली।
खुशबू फैल जाए जहां वह मुस्कुराए
कदम पड़े उसकी गली गली।

सिमटी हुई कली , मेरे आंगन में खिली।

  • मनीभाई नवरत्न

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