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सोच सोच के सोचो

नारी ना होती,श्रृंगार करता कौन?
हुस्न की बात चले तो,तेरा नाम लेता कौन?


नख-शिख चित्रण ,उभारता कौन?
गर ना श्रृंगार होता,कविताएँ लिखता कौन?
कवि की लेखनी क्या होती मोन?
श्रृंगार देख बिन पिये, नशा चढ़ाता कौन?

पल-पल क्षण-क्षण,प्रिय मिलन की आस जगाता कौन?
सांझ का आँचल लहराये, मनमद मस्त महकाता कौन?
दो दिलों के मिलन का आधार बनाता कौन?
रसराज श्रृंगार की गाथा, गाता कौन?


हाय, विरह की पीडा़ को,दर्पण जैसा दिखलाता कौन?
श्रृंगार के वियोग में, प्रेम मे बहकाता कौन?
देखे,जो हसीन ख्वाब, दुल्हन बन रंग भरता कौन?
रसराज बिना,रसपान कराता कौन?


पुष्प नया खिलाता कौन?
प्रियतम तेरे प्रेम में, चातक -चकोर सा दर्द जगाता कौन?
अनगिनत दिलों को, मुहोब्बत का रास्ता दिखलाता कौन?
सोचो सोच के सोचो।।

                            अनिता पुरोहित
                               मोल्यासी सीकर


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