स्त्री की उड़ान – माला पहल
यह कविता स्त्री शक्ति की आशा और आकांक्षाओ की उड़ान की तैयारी पर लिखी गई है।
स्त्री की उड़ान – माला पहल
यह कविता स्त्री शक्ति की आशा और आकांक्षाओ की उड़ान की तैयारी पर लिखी गई है। जिसके रचयिता माला पहल मुंबई से हैं।

वर्षा की फुहार में छप छप करती मैं।
गगन में उड़ान भरती हूँ मैं।
नयनों में भविष्य के सपने संजोती,
धरा से पंखों में हवा हूँ भरती।
सूरज करे मेरा अभिवादन,
चंदा कहे अभिनन्दन,अभिनन्दन।
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तारों ने भरी मन्द मुस्कान,
और ग्रहों ने दिया सम्मान।
बादलों ने कहा तुम हो महान।
सुनहरे है मेरे अनगिनत सपने,
दृढता से बुने है मैंने इतने।
गगन को छू लेने की तमन्ना,
कोई न कर सके मेरा सामना।
विश्व को दिखाऊँ मैं मेरी महत्ता,
हिला सके न कोई मेरी सत्ता।
अजर अमर हो मेरी गाथा,
गौरव से ऊँचा हो भारत का माथा।
माला पहल – मुंबई ।