सत्य की खोज में नारी
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अगर सत्य की खोज में
छोड़ती घर द्वार
एक कमसिन बेबस
जिज्ञासु नार
तो क्या ,बन पाती वो
महात्मा बुद्ध
न जाने कितने होते
उसके भीतर बाहर
युद्ध ही युद्ध
कटाक्ष,लाँछन,कर्ण भेदी ताने होते।
गैर तो गैर,अपने भी
उसके बेगाने होते।
हाथ में पछतावा,
आँखों मे आँसू,
ढूंढती निगाहें होती।
बचे जीवन मे बस उसके लिए,
काँटों भरी राहें होती।
सँग रहती,तो सबकी शर्ते होती,
अलग थलग दिन रात वो रोती।
ज़रा हो जाती और
पछता कर बोलती,यही सत्य है,
तू अबला थी,है और रहेगी,
बस सत्य में यही तथ्य है।
रजनी श्री बेदी
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद