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सुंदर सा मेरा गाँव

यही सुंदर सा मेरा गाँव
पले हम पाकर सबका प्यार।
यहाँ बनता नहीं धर्म तनाव
यहीं अपना सुखमय संसार।
बजे जब यहाँ सुबह के चार
करें जब नृत्य विपिन में मोर।


दिशा पूरब सिंदूर उभार
निशा की गोद तजे  जब भोर।
कृषक उठकर बैलों को खोल
लिए अब चलें जहाँ गोआर।
सुनो तब झंकृत घंटी बोल
बँधे जो गले करें झंकार ।


यहाँ पनघट में देख कतार
लटे उलझीं और बिखरे केंश।
कहीं कोई न दिखे श्रृंगार
बहन या माँ सब सादे वेश।
करें फुरसतिया स्वप्न विचार
रहीं कुछ पहने वस्त्र संभाल।


हुई क्या रात में यही  सार
बता औ पूछ रहे वो हाल ।
खुला अब मंदिर का भी द्वार
बजाएंगे पंडित जी शंख।
उगा सूरज अब रंग निखार
उड़े खग नभ फैलाकर पंख।

सुनील गुप्ता केसला रोड

सीतापुर सरगुजा छत्तीसगढ

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