स्वामी विवेकानंद जी पर कविता
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विश्व गुरु का पद पाकर भी,
नहीं कभी अभिमानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
//१//
सूक्ष्म तत्व का ज्ञान जिन्हें था,
मानव जन्म प्रवर्तक थे।
दिन दुखी निर्धन पिछड़ो का,
यह तो परम समर्थक थे।
धरती से अम्बर तक जिसनें,
पावन ध्वज फहराया था।
प्रेम-भाव के रीति धर्म का,
जग को मर्म बताया था।
तपते रेगिस्तानों में जो,
आशाओं के पानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
//२//
नहीं झुके थे,नहीं रूके थे,
आगे कदम बढ़ाते थे।
मानवता के मर्म भेद को,
जग को सदा पढ़ाते थे।
किया पल्लवित मन बागों को,
लेप लगाकर घावों में।
प्रखर ओज शुचिता भरते थे,
बूझ रहें मनभावों में।
ज्ञान दान करने के पथ में,
सबसे बढ़कर दानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
//३//
विपदाओं को दूर करें जो,
लक्ष्य वही थे कर्मो में।
भेद नहीं करते थे स्वामी,
कभी किसी के धर्मो में।
भगवा पट धारणकर हम भी,
जग में अलख जगाएंगे।
“कोहिनूर”अब विश्व गुरु के,
पग में सुमन चढ़ाएंगे।
जीवन की परिभाषाओं में,
जिनसे पुण्य कहानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
★★★★★★★★★★★★
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”