स्वाभिमान पर कविता

जब शब्द अधरों से परे हुए
और
कोरे कागज काले कर जायें तो
जब अंधेरा ही अंधेरा हो
और एक चिंगारी जल जाए तो
जब हार गए और टूट गए
बिखरे फिर भी रूके नहीं
स्वाभिमान फिर भी मरा नहीं
गिरे मगर झुके नहीं।।
तूफानों का मंजर था
सामने दुश्मन लिए खंजर था
फिर भी राख में छिपी
एक चिंगारी थी
दुश्मन कि बस्ती ज़ारी थी।।
जब अधरों का अवरोध बने
तब कलम नहीं रूकने दूंगा
जब समर शेष का रण होगा
तब स्वाभिमान नहीं झुकने दूंगा।।

तृपित समर


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