किस मंजिल की ओर ?
किस मंजिल की ओर ? क्यारी सूख रही है निरंतर..आग जल रही हैं हर कहीं..घर हो या पास पडौ़स ..विश्वास की डोर नहीं है…टूट रही हैं नित ख्वाहिशेंनहीं रहा है भाईचारा…प्रेम…स्नेह छूट गया है..कहीं दूर…अंतरिक्ष सदृश्य..वैमनस्य पलने लगा है नजरों में..अंधकार छा रहा है… बादल धुलते नहीं है… अबमन की कालिख…दिल की काल कोठरी मेंईर्ष्या … Read more